मीणा इतिहास



आमुख

मीणों का प्रस्तुत इतिहास एक संयोग की बात है। मेरे आदरणीय मित्र कुंवर चंद्रसिंह ने एक दिन मीणों के ऐतिहासिक विवरण के संकलन में जुटे हुए श्री झंूथालाल नांढ़ला से परिचय करवाया और इतिहास लिखाने की उनकी इच्छा का उल्लेख किया। मैं इतिहासकार नहीं हूं, फिर भी मुझे इस कार्य में अनायास रुचि प्रतीत हुई और मैंने हां भर ली। श्री झूंथालाल ने मौखिक तथा लिखित रूप से प्राप्त होने वाली विविध प्रकार की सामग्री एकत्रित कर रखी थी और बही-भाटों से वं ा-वृक्षों की प्रतिलिपियां भी प्राप्त कर ली थी। उक्त सारी सामग्री लेकर वे मेरे पास आए। सामग्री को मोटे तौर पर देखने के बाद उसके आधार पर एक स्थूल जानकारी मात्र दे सकने की संभावना ही मुझे प्रतीत हुई। अत: मेरी कल्पना एक ऐतिहासिक कथानक प्रस्तुत करने भर की थी।
समय बीतता गया और श्री झूंथालाल अपने अथक परिश्रम और लगन से इतिहास-लेखन का कार्य प्रारंभ करने के लिए आव यक साधन जुटाने में जुटे रहे। यह उनकी नि:स्वार्थ भावना और दृढ़ लगन का ही परिणाम था कि वे साधनों को जुटा पाए। काम प्रारंभ करते समय इतिहास की विशय-सूची तैयार करने पर प्रामाणिक सामग्री का नितांत अभाव दृश्टिगोचर हुआ। राजस्थान के इतिहासकारों में कर्नल टॉड को छोड़कर सभी ने मीणों के इतिहास पर या तो कुछ लिखा ही नहीं और यदि कुछ लिखा भी है तो वह अति नगण्य और सहानुभूति से रहित ही नहीं पूर्वाग्रहों से युक्त होकर लिखा है। मीणों को उन्होंने जंगली, चोर-धाड़ी, भाूद्र और आि ाक्षित तथा असंस्कृत जाति घोशित कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझली है। ऐसी स्थिति में उनके उज्ज्वल अतीत की पुश्टि किन आथारों पर की जा सकती थी?
इसी उधेड़-बुन में मैंने कुछ विद्वान मित्रों तथा प्रसिद्ध इतिहास प्रेमियों से चर्चा प्रारम्भ की। गजेटियर विभाग के विद्वान इतिहासज्ञ श्री सिंह से बातचीत के दौरान उन्होंने इण्डियन एण्टीक्वेरी में प्रकाि ात कुछ सामग्री की ओर मेरा ध्यान आकर्शित किया। एण्टीक्वेरी की कई जिल्दें उलटने पर श्री सैलेटोर का एक पर्याप्त लंबा निबंध मिला। जिसमें उन्होंने मीणों की विस्ताररपूर्वक चर्चा की है। इसी लेख से मुझे प्रस्तुत इतिहास का मार्गद र्ान मिला और वह मूलसूत्र मेरे हस्तगत हुआ जिसके सहारे मैं आगे बढ़ता गया। इस लेख से मेरे समूचे दृश्टिकोण में एक नाटकीय परिवर्तन आ गया और मैंने मीणों का एक यथासंभव वैज्ञानिक इतिहास प्रस्तुत करने का नि चय किया। आर्क्योलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, एपीग्राफिया इण्डिका, कैंम्ब्रिजहिस्ट्री, इलियट डाउसन आदि अनेक सुप्रसिद्ध ग्रंथों के पृश्ठों में मुझे विविध प्रकार की उपयोगी जानकारी मिली। श्री झूंथालाल द्वारा संग्रहित भण्डार का यथा ाक्य उपयोग किया।
इसी बीच मीणों के प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों को देखना आव यक समझ मैंने कुछ उत्साही समाज-सेवकों के साथ खोड़, मांची, आमेर, भांडारेज, नई, दौसा, राजोरगढ़, नरैठ, क्यारा, नाराणी, मांचेड़ी आदि स्थानों का भ्रमण किया। इस यात्रा ने मुझे मीणों के बहुसंख्यक थोकों और उनकी परंपरागत भूमि तथा उनके रहन-सहन आदि की जानकारी दी। इस यात्रा में उन सुप्रसिद्ध स्थानों के चित्र भी लिए गए जो इस पुस्तक में यथास्थान प्रकाि ात किए गए हैं। इतिहास संबंधी मौखिक इतिवृत्त की सत्यता जानने के लिए मेरे आग्रह पर श्री झूंथालाल ने मीणा के जागाओं, डूमों तथा बड़े-बूढ़ों की कई गोश्ठियां आमंत्रित की जिनसे विस्तारपूर्वक चर्चा कर मैंने परम्परागत इतिहास की बातें लिपिबद्ध की।
व्यक्तिगत रूप से मैंने जोधपुर, अजमेर, उदयपुर आदि स्थानों की यात्राओं में भी मीणों से संबंधित उपयोगी जानकारी का संकलन किया।
मीणा-समाज के रत्न स्वर्गीय मुनि मगनसागर द्वारा लिखित 'मीनपुराण भूमिका` तथा 'मीनपुराण` नामक ग्रंथों से भी मुझे मीणों के इतिहास की कई उपयोगी बातें ज्ञात हुई। मीणा समाज में यही सर्वप्रथम विद्वान हुए हैं जिन्होंने मीणों का इतिहास प्रस्तुत करने की चेश्टा की। मुनिश्री गोठवाल जाति के मीणा थे और उन्होंने जैन धर्म में दीक्षित होकर संस्कृत, प्राकृत आदि के वाङ्मय का अध्ययन किया था जिससे भारतीय संस्कृत साहित्य का उनको विस्तृत ज्ञान था। 'मीनपुराण` नामक स्वतंत्र पुराण की रचना उनके इस ज्ञान की ही परिचायक है। खेद है कि ऐसे विद्वान को इतिहास विद्या के आधुनिक ज्ञाता का सहयोग नहीं मिल पाया। अन्यथा वे मीणा-समाज का बहुत बड़ा उपकार करने में समर्थ होते।
समय तथा साधनों के अभाव में मीणों का यह ऐतिहासिक इतिवृत्त मात्र प्रस्तुत करके संतोश करना पड़ रहा है। इस महान जाति का विस्तृत और प्रामाणिक इतिहास तैयार करने के लिये इनके परम्परागत स्थानों का भ्रमण करके प्राचीन स्मारकों को देखने तथा लोक-मुख पर चले आ रहे प्रवादों आदि के संग्रह करने की बड़ी आव यकता है। राजस्थान तथा बाहर के ऐसे सभी स्थानों को देखने के लिये पर्याप्त समय और साधन चाहिये। ऐसा होने पर ही इस जाति का बृहत् इतिहास प्रस्तुत किया जा सकेगा। यह प्रसन्नता का विशय है कि मीणा-समाज के सुपठित लोग इस कार्य की ओर सचेत हैं और वि ोशकर श्री झूंथालाल की लगन और सामर्थ्य से यह कार्य सम्पन्न होगा, ऐसा मेरा वि वास है।
अंत में पुस्तक के प्रस्तुतीकरण में जिन मित्रों तथा विद्वानों से मुझे सहयोग मिला है उन्हें धन्यवाद देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। सर्वश्री रामवल्लभ सोमाणी, सीताराम लाळस, सौभागसिंह भोखावत, कृश्णचन्द्र भाास्त्री, बृजमोहन जावलिया, गिरी ा भार्मा, कानसिंह रावत, अमरीकसिंह तथा कुंवर संग्रामसिंह भोखावत ने मुझे समय-समय पर उपयोगी सुझाव, जानकारी तथा सामग्री देकर अनुग्रहीत किया है। प्रिय मुरलीधर भार्मा ने अनेक कश्ट सहकर मेरे साथ यात्रायें की और सभी स्थानों के फोटो खींचकर मुझे अपना स्नेह दिया।
जयपुर स्थित महाराजा पब्लिक लाइब्रेरी के विद्वान पुस्तकाध्यक्ष श्री दीपसिंह तथा श्री राव का सहयोग भी मेरे लिये बड़ा सहायक रहा। मीणा-समाज के उत्साही और नि:स्वार्थसेवी महानुभावों सर्वश्री गुलाबचंद गोठवाळ, रामसहाय सीहरा, अरिसालसिंह छापोला, चंदालाल व्याड़वाळ, लक्ष्मीनारायण झरवाळ, कि ानलाल वर्मा आदि ने जो रुचि प्रदि र्ात की उससे मुझे प्रेरणा मिली है। समाज के अन्य अनेक साथियों ने भी मुझसे मिलकर मेरे कार्य की सराहना की जिसके लिये मैं उन सबका आभारी हूं। अंत में राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री माननीय मोहनलाल सुखाड़िया तथा राजस्थान प्रदे ा कांग्रेस के अध्यक्ष माननीय श्री नाथराम मिर्धा के प्रति भी मैं कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूं जिन्होंने पुस्तक के लिए 'दो भाब्द` तथा 'सम्मति` लिखने की कृपा की। (जयपुर, ऋशि पंचमी, २०२५ वि.)

47 comments:

  1. मीणा जाति का पुरा इतिहास सामने आना चाहिए

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    1. बिलकुल सही

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    2. भाई मैं mp से हूं हमारे यहां न कोई रावतो को आदिवासी मादिवासी बोलता है मध्यप्रदेश(mp) में आदिवासी चौहान लिखते है और न ही हमारा उनके वहां न ही खाना पीना होता है और न उनके कोई ब्राह्मण भोजन होता है हम रावत ठाकुर है जिन्हे मीणा भी बोलते है और ठाकुर भी बोलते है और मेहते भी बोलते है और जमींदार भी बोलते है और obc कैटेगरी में आते है और चौहान आदिवासी जो की st कैटेगरी में आते है वैसे चौहान ठाकुर अलग होते है मगर जो आप लोग रावत मीणा और मीणा आदिवासी में लगे है वह इसी प्रकार है जो की मैने चौहान आदिवासियो के बारे में बताया है मध्यप्रदेश में रावतो को आदिवासी मादिवासी कोई नही बोलता है और न ही वे आदिवासी है वह तो राजस्थान में आरक्षण के लिए मीणा ओ के किसी नेता ने असली आदिवासियो को और उनकी हालत को दिखाकर उन्हें किसी बड़े नेता को बता दिया की यही मीणा है और नेता जी ने बोला अरे वास्तव में मीणा ओ की हालत ज्यादा खराब है इसलिए उन्हें आरक्षण के लिए st में सामिल कर दिया तो इससे कोई आदिवासी थोड़ी हुआ आदिवासी एक अलग जाति होती है मीणा ओ की जाति मैना या मैणा ठाकुर होती है mp के रावतो के ब्राह्मण भोज होता है लेकिन राजस्थान के मीणा ओ का नही पता लेकिन एमपी के रावत राजस्थान के मीणा ओ से वैवाहिक संबध रखते है और आप लोग फालतू की बात कर रहे हो यह तो सब अप लोगो का भ्रम है आदिवासी तो आदिवासी ही रहेगा न मीणा कैसे हो सकता है एमपी में आदिवासियो को डायरेक्ट आदिवासी बोला जाता है न की चौहान वह चौहान लिखते है फिर भी अब बताइए की आदिवासी कौन हुआ और हमारे जगा की पोथी में लिखा है की चौहान, राठौर जैसी जाति भी रावतो में से अलग हुई एक जाति है और आप वैसे मीणा जाति बहुत शिक्षित जाति है न की आदिवासी है मीणा भगवान विष्णु का अवतार है न कि आदिवासी मदिवाशी है हमारे यहां मीनेश जयंती भी मनाई जाती है जिसमे भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य भगवान की पूजा की जाति है और मीणा अंबेडकर को नही पूजते बल्कि जो असली आदिवासी या जाटव लोग पूजते है क्योंकि मीणा एक स्वतंत्र क्षत्रिय जाति है एमपी में रावत (ठाकुर) यानी मीणा ओ की ही चलती है और बंदूक चलती है सूंता सूत और कोई बीच में आता है तो उसकी भगवान से जल्दी मुलाकात हो जाति है । हमारे गोत्र चंद्रवंसी जिन्हे चंदनावत भी बोलते है और भी गोत्र है ऐसे ही ok। यही असली जानकारी है और आपको विस्वास नही हो तो आ जाना mp में फिर जो मैने आपको बताया है वह पूछना आपको बिलकुल इसी प्रकार का जवाब मिलेगा चाहे आप मीणा जाति के लोग से पूंछ लेना चाहे सिकरवार ठाकुरों से पूंछ लेना चाहे जाटव( चमार) से पूंछ लेना और चाहे आदिवासियो से पूंछ लेना यही आंसर मिलेगा

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    3. भाई फेसबुक पर जूडो मेरी आईडी है सागर मीणा माणतवाल हिंदी में सर्च करना भाई थोड़ी जानकारी चाहिए या आप मुझे अपनी आईडी बताओ

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    4. Bro agar koi rajput ek jagah general m h and dusri jagah obc m to iska Matlab ye nhi ki wo dono alag h
      Same h na
      Waise hi meena reservation ke karan ST m h kyoki kuch meena log rj ke south m kafi gareeb the to hum bhi st m aa gaye .
      Agar koi aage se fayada de to koi mana karega .🙏🏻😂

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    1. रावत मीणा के शाखाओं के बारे में जानकारी दो

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    2. रावत मीणा, भील और राजपूत तीनों जातियों में पाये जाते है।

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    3. मीणा ही असली रावत ठाकुर है और ओबीसी में आते है mp में

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  3. रावत राजपूत,मेर मीणा,मेहरात,चिता,काठात यह सब मेर थे।

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    1. In सभी ने मेर शब्द हटा लिया

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  4. Kya kissi Bhai ne rawat meena ka Cast certificate banvaya hai kya yadi hai plz ak copy dedo

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  5. Meena ka poora ithash dalna yaar plz

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  6. Kya ravt jo (puskr ajmer) thsil ke tilora gav me rhte h vo meena h ya nhi agr h to fir obc me kyu aate h or agr nhi to unke ist devta jhajpur (thsil bhilwada) ko kese mante h or inke purvj jhazpur के pas gav नेगडिया के है to फिर मीणा ओर रावत के bich obc ओर st kyu or रिस्तेदारी भी नही हो सकती kyu जवाब दे सही क्या है

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    1. Ha ye baat bilkul sahi hai hum rawat obc wale meena st se sadi nhi karte, aur samajik tor par khana pina nahi karte esa kyu hai ???

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    2. Because they are having important role and alignment with Prathviraj and sowhy they are influences ....

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    3. Meenas st m hi nahi balki genral aur obc m bhi aate hai. Jaha tak mujhe pata hai ki meenao k ghar brahman khaana khaane aate hai eenke brahman bhoj hota h us m..... Rawat ek upaadhi thi jo ki meenao ko di gayi thi aur rajputo m bhi hote hai rawat aur kayi jagah meenao ko thakur ki upaadhi bhi di gayi thi..... St m aana ya obc m aana ya genral m aana ye toh ek alag hi chij hai ees ka castes se koi relation nahi hai rajput bhi st m aate hai south side m ....

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    4. एक ही है बाद में राजनीतिक कारणों से अलग अलग बट गये आज भी रावत मीणा का प्रत्यक्ष उदाहरण मिलता है। हमारे पडौसी है जिसकी मां ब्यावर की रावत है और पिता जहाजपुर भीलवाड़ा के मीणा है।

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    5. भाई आप इस पर रिसर्च करो 90% जो रावत राजपूत है उनकी रिश्तेदारियां कही
      न कही मीणाओ में ही है । भाई सच तो ये है कि रावत राजपूत तो बन गए लेकिन शादी नहीं होने पर वो वापिस मीणा में ही आना पड़ता है । भाई राजपूत बनने का ऐसा भी क्या शोक है जिनके साथ न तो उठना बैठना न ही रोटी बेटी का रिश्ता ।

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  7. Bhai meri website par support kre
    Http://www.asiaenews.co

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  8. क्या हिन्दू राजपूतो को रावत मीणा भी कहा जाता है

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    1. Haan meenao ko kuch states m rajput aur pardesi rajput bhi bolte hai....... Aur kayi jagah thakur bhi bolte hai....

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    2. This comment has been removed by the author.

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  9. श्री मान जी मेरा नाम खेवेंद्र सिंह चौहान है और में रावत obc समुदाय से हु जब भी मेने रावत और मीना में सम्बन्ध तलाशे तो कुछ गोत्र मिली जैसे मालावत, झूठा, बुझ , लगैत जो की आदिवासी मीना कहलाते है उदैपुर के पास कानोड़, भींडर,लसाडिया में रहते है। और जहा तक देखा जाय तो प्रत्यक्ष उदाहरण मोठी रावत obc का है जिनके परिवार मंगरा क्षेत्र टॉडगढ़( मांगट जी महाराज मालदेव जी पंवार)से जहाजपुर गये वे वहां जाके मोटिस मीना कहलाये वे सभी मीना में शादी करते है जैसे कटारा ,डामोर, निनामा।
    और आप एक स्थान का दर्शन जरूर करे शायद आपको तथ्य मिले।
    मारवाड़ क्षेत्र (पाली) में एक स्थान है सारण जहा एक किला बना है और वह रावत obc बरड वंशीय गुरुदवारा है 【 मंगरा क्षेत्र में रावत के 2वंश चीता व् बरड है)
    वहां बरड वंश के गुरु बैठते है उन्होंने मुझे जानकारी दी की सिर्फ अरावली पहाड़ी में बसने वाले रावत राजपूत है बाकी रावत भील व् रावत मीना है पर श्री मान जी आप एक बार आप सारण पीर गांव सारण तहसील मारवाड़ जंक्शन पाली का दर्शन अवश्य करे और वहां से भी कुछ इतिहासिक अंश निकाले
    धन्यवाद्

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    1. भाई किसने कह दिया तुमको की निनामा और मोठिस भीली या मीणा है? इतिहास में तो ऐसा बिलकुल भी नहीं लिखा। देखो भाई ऐसा है कि रावत मीणों में आते ही नहीं है कोई सा भी रावत हो और जो खुद को मीणा या भील बोलते हैं वो भी रावत राजपूत ही है,फर्क सिर्फ इतना है उनकी ऐसी हालत हो गई थी कि उनको आरक्षण का सहारा लेना पड़ा और खुदको दूसरी जाति का बताना पड़ा और भी कई बड़ी बड़ी समस्याओं के कारण उनको ये फैसला लेना पड़ा समझे?
      निनामा और मोठिस पंवार के आज भी रावले, गढ़, सिरे मौजूद हैं और उनमें से अभी भी बहुत सारे हैं जो आज भी रावत राजपूत ही है और महारावल के ठाकुर है आज भी और आपकी जानकारी के लिए बता दूं निनामा चीता चौहान हैं। पहले इतिहास पढ़ लो अच्छे से, ऐसे किसी से सुन के गलत जानकारी मत दो लोगों को। मीणों के कोई गढ़ नहीं थे राजपूत काल में और पढ़ें लिखे हों तो ये भी समझ जाओगे की चौहान, पंवार,राठौर,गुहीलोत, सोलंकी वगेराह राजपूतों के वंश ना की मीणों के।

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    2. हम प्रतिहार मीणा है हमारे गांव में ब्यावर से दो चार रावत मीणाओ के संबंध है यानी वहां की तीन स्त्रियां प्रतिहारो की पत्नियां हैं इससे सिद्ध है की रावत मीणा है मेरवाड़ा के इतिहास को सही से पढ़े आमेर के को पढ़ें हाड़ौती के को पढ़ें खासतौर से 12वी शदी से पहले के इतिहास को जो जो राजपूतों द्वारा छिपा लिया गया कर्नल टॉड की पुस्तक कनिंघम की पुस्तक में सभी उदाहरण है

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    3. प्रतिहार चीता मोटीस ये तीनो गोत्र बड़ी संख्या में जहाजपुर देवली तहसील जिला भीलवाड़ा क्षेत्र में पाई जाती है और सब मीणा हे। और ब्यावर के रावत मीणाओ से संबंध है।

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    4. भाई जो आप ये मोटीस चीता बरड सभी गोत्र के नाम ले रहै हो हमारी तहसील जहाजपुर में सभी बड़ी मात्रा में है और सभी मीणाओ की गोत्र है।और हम प्रतिहार ।रावत और प्रतिहार मीणा जो एक समय राजपूतों में से निकले थे

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    5. अगर मीणाओं के कोई गढ़ नहीं है तो फिर जमवारामगढ़ गेटोर और झोटवाड़ा बास्को आदि जगहों पर गढ़ कहा से आये और दुल्हराय का किस से युद्ध हुआ था राजा झोपडी मे रहते थे क्या

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    6. Bilkul bhai tum n sahi kaha kuch log jo purvi rajsthan aur mp k honge vo es chij se parithit hai bhai rawat meenao m bhi hote hai meenao k jaagao ki potli m meena aur rajputo k kayi sambandh likhe hai aur mostly dundhar region k hi likhe hai meenao m suryavanshi chandravanshi jaise bhi gotra hai....

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    7. And apka hamara dna to same hi h 😂

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    8. भाई मेरी जानकारी के अनुसार जो भी रावत राजपूत है वो मीणा ही क्योंकि इनके एक दो नहीं बल्कि कही उदाहरण हैं ओर इनमें वैवाहिक संबंध भी होते हैं राजसमंद ओर अजमेर में जो रावत राजपूत है उनके वैवाहिक संबंध उदयपुर में मीणा से है बल्कि इनकी एक दो गोत्र नहीं सभी गोत्र मीणा में है जैसे मलावत बुझ बरगत वरात बोड डामर ननामा कटारा रहलोत विठोल पालावत ओर बहुत सारे लोगो के तो जमीन रजस्ट्री में भी सिंह रावत लिखा है अगर ये रावत राजपूत है तो फिर मीणा में शादी क्यों करते हैं

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  10. रावत पहले मेर थे जो की मेर मीणाओ को ही कहा जाता था।
    कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक में लिखा है अजमेर से कुंभलगढ़ तक के क्षेत्र जिसमें ब्यावर भीम मसूदा पुष्कर पीसांगन जैंतारण रावत बाहुल्य तहसील आती है ।के बारे में कहा है इसे मेरवाड़ा के नाम से जाना जाता था।मेर+वाडा अर्थात मेरो के रहने का स्थान जिसमें मेर मीणाओ का वर्चस्व था।दूसरी और अलवर क्षेत्र को मेवात कहा जाता है जिसमें मेव मीणाओ का वर्चस्व था। ये
    इतिहासकार सुरेंद्र सिंह अंचल की पुस्तक पेज संख्या 201 पर लिखा है ।17जनवरी 1917राजगढ अजमेर सभा में महाराजा उम्मेद सिंह शाहपुरा और खरवा शासक गोपाल सिंह के नेतृत्व में मेरो ने रावत उपाधि धारण की उसके प्रमाण में लिखा है 1891की जनगणना से 1921की जनगणना यानी 31वर्ष में 72%मेरो में कमी आई वहीं रावतो में 72%बढोतरी हुई जो मेर से रावत बने थे। दूसरा आगे लिखा है रावत कोई जाति नहीं उपाधि है जो मेरो की पदवी है और मेर मीणा होते थे। पूर्वी राजस्थान के मीणाओ के आतंक से परेशान अंग्रेजों ने 1924मे जयराम पेशा कानून थोपा जिसमें मीणाओ को दिन में दो बार हाजिरी देना अनिवार्य था ऐसे में आदमी दिन में पैदल दो बार दस दस किमी चलकर थाने में जाता काम किस वक्त करता तो धीरे धीरे स्थिति डाउन हुई और आजादी के समय आरक्षण के दायरे में आए । और S.Tमे और रावत ओबीसी में रह गये।
    इतिहासकार प्रकाश चंद मेहता की पुस्तक में भी तर्क दिया है की रावत मीणा है न की राजपूत ।मीणाओ और रावतो के परस्पर अनेक वैवाहिक संबंध मिल जाते हैं पर पिछले हो सालों से रावत राजपूतों में नाम मात्र भी देखने को न मिले। स्थिति परिस्थितियां बदलने से अलग करने और सच्चाई दबाने से नहीं दबती इसी तरह नीमच मध्यप्रदेश के रावतो को राजपूत कहते थे एक दो साल पहले वे आवाज उठाकर मीणा में शामिल हुए है

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    1. Aare bhai kuch meenao ko muglo k time convert kiya tha unhe mer bolte hai par un n apni sanskriti aaj tak nahi chohodi tumhe puri jaankari nahi hai ees baare m ..... Aur aaj bhi kayi mer khud ko meena hi bolte hai.....aur jaagao ki potli m bhi likha hai....

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  11. आप सभी से निवेदन है कि आप पहले इतिहास पड ले फिर बताए रावत एक उपाधि है जो राजपूत सरदारों को दी जाती थी जो नाम के आगे लगाई जाती थी पर तुम लोगों ने इसे नाम के पीछे लगा कर जाती बना दी
    और रावतो की तुलना भिल ओर मीणा से नहीं करे
    रावत एक उपाधि है और राजपूत हमारी जाती जिसमें चौहान सोलंकी राठौर।पंवार चूंडावत आदि आते हैं

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    1. Bhai sahi kaha upaadi toh hai rawat jo ki kayi sardaro ko di jaati thi meena sardaaro ko bhi di gayi thi....same apply with thakir also ..... Aur jo ye sab rawat ko bheelo m lagane wali baat bolte hai is m ye hai ki kayi meenao ko di jaati thi par kuch meena maharan pratap k yuddh m shaamil the arawli ki pahadiyo m tab se meenao m bheel-meena varg utpann hua tab se bheelo m bhi ue upaadhi chali gayi..... Rajput aur meenao ka connection dindhar aur mewar ki taraf jyada milta hai ab tum ye bhi dekho ki jo Rajasthan m kaila devi ka mandir hai us m paramparagat pujari toh meena hi hai jo ki us mandir k puraane sathaan k time se hi pujte aa rahe hai aur vo hi jaagran karte hai unme hi maata aati h jaagran k time agar tum ya timhare rishterdar m koi gaya ho toh verify kar sakte ho.......

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  12. भाई को छापोला ‌‌‌‌‌मीणा के बारे में विस्तार से जानकारी दे सकता है क्या ? मैंने कई जगह ढूंढा है पर अच्छे से जानकारी नहीं मिल रही है

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  13. तेजाजी का युद्ध चांग के मेर मीणाओ से हुआ था अजमेर भीलवाडा मे रहने वाले सभी रावत मीणा ही है। चीता वरड व मोंटिस मीणाओ के ही गोत्रं है न की राजपूतो के।

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  14. मीणा समुदाय का विवरण एक :- 1. पुराना वासी 2. नया वासी। दूसरा :- 1. जमींदार (रावत) मीणा 2. चौकीदार मीणा 3.पड़िहार मीणा 4.भील मीणा।
    गोत्र या उपाधि के रूप में रावत शब्द जमींदार मीणा, पड़िहार मीणा, राजपूत, जाट, वैश्य, गुर्जर, यादव आदि जातियों में लगाया जाता है। मध्यप्रदेश में उपाधि / जाति / सरनेम के रूप में रावत शब्द केवल मीणा जाति में ही प्रयुक्त किया जाता है। मध्यप्रदेश में मीणाओं को रावत, मीणा, देशवाली, मैना से पुकारा जाता है। सरनेम के रूप में मीणा, रावत, देशवाली, मारण के अलावा अपने अपने गोत्रों को भी लगाते हैं। वर्तमान मध्यप्रदेश की सीमाएं 01.11.1956 से संस्थित है। प्राचीनकाल में भू-भागों की सीमाएं कई बार बदलती रही हैं। प्राचीनकाल में मुरैना, गवालियर श्योपुर शिवपुरी जिले मत्स्य महाजनपद के भाग थे। जहां मीणाओं का राज था। कालान्तर में ये क्षेत्र राजपूतों के हाथों में आ गए। आज भी इन क्षेत्रों में मीणा भारी संख्या में निवासरत हैं और प्राचीन अवशेष भी मौजूद हैं। जिनका विवरण जागाओं की पोथियों (वंशावलियों) में दर्ज है। मीणा जाति सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख कबीला था। मीणा जाति में 5248 गोत्र हैं। यह संख्या दर्शाती है कि मीणा भारत की एक विशाल जाति/समुदाय है। मीणा स्वतंत्रता प्रेमी स्वछंद विचरण पसंद समुदाय रहा है। जिसने जंगल सहे हैं लेकिन अधीनता स्वीकार नहीं की और न ही किसी की गुलामी की।

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  16. रावत मीना राजपूत कहलाने की होड़ में,जात को ही नकार चुके हैं,उसके जिम्मेदार स्वयम है,दयनीय रहे तो रहे, स्थिति, उच्च भी बनना चाहते है,और फायदा भी दोनों ,नहीं मिल सकते😂,रही बात दूसरी तो,मांगट देव मोटीस पंवार वंशीधर मीनाओ का कुल देव है,वही खुदको रावत राजपूत कहने वालों का है,दोनों अपना पूर्वज मानते हैं,मांगट देव को,इसका अर्थ यही हुआ की,वे रावत मीना ही थे,जो रावत राजपूत लगाने लगे, वरना राजपूतों और मीनाओ में कोई संबंध नहीं है,तो इनमे क्यूं मिलते जुलते हैं,शुद्ध रावत राजपूत तो मेरवाड़ा में मुश्किल से 10-20%होंगे बाकी मीना ही है,मेर मीना जो रावत राजपूत बन गये

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  17. भाई रावत राजपूत मीणा कि ही एक उपाधि है जो समय के साथ एक अलग जाती बन गई उदयपुर राजसमंद, ओर अजमेर में एक भी रावत राजपूत ऐसा नहीं होगा जिसकी शादी किसी राजपूत में हुई हो जबकी मीणा जाती में इनकी शादी के कई उदाहरण मिल जाएंगे ये अपने आप को रावत राजपूत कहते है ओर शादी विवाह मीणा में करते है भाई हमारे गांव में ऐसे कई लोग है सिंह रावत राजपूत लगाते थे लेकिन शादी उन्होंने मीणा में की तो मुझे ये बताईए कि उनकी शादी राजपूतों में क्यों नहीं हुई ओर भाई रावत राजपूतों के एक दो गोत्र नहीं लगभग सभी गोत्र मीणा जाती से मेल खाते है

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  18. अजमेर मेरवाडा के रावतो के गोत भी मीनो से मिलते है ।मीणा और रावतो मे बेटी ब्यवहार के रिश्ते के साक्ष्य मिलते है ।पहाडी क्षेत्र मे रहने और सजातीय काठात मेहरात के साथ बेटी ब्यवहार आदि के कारण सामाजिक प्रतिष्ठा का पतन हो गया ।पूर्व मे मेर भी कहते थे । 30 अक्टूबर 1947, मे सेंदडा सम्मेलन मे भावी राजनीति को ध्यान मे रखते हुये जोधपुर महाराजा हनुमंत सिंह जी ने इनको रावत राजपूत घोषित किया इनके राजपूतो के साथ बेटी व्यवहार भी नही होता इनके सामाजिक नेता लालसिहंजी पोखरिया और कानसिंह टाडगढ इन रावतो को मीना जाति की उपजाति मानते थे ।

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