बखत रै परवाण



सनमंध

सरदी में सिरखां सा, गरमी पाथरणा
मिलतां तो ब्याज जिसा, बीछड़तां भरणा

साबत हथबीजणियां, टूटता बळीता
जगतां मुसालां सा, (पण) बळता पळीता

अणचींती ओळख सा, क्रितघण बिसराया
जुड़ता तो पुळ सा पण बिलगंता खायां

होठां री मुळक तळै पोटां जहरां री
निजरां मंे गिरजणियां भूंडां चहरां री

मिसरी सा बोलां में, तिरसूळी फांसां
सरमां रै सरबत में, भरमां री गांसां

बगलां में छूरियां अर कत्तरण्यां हाथां
जद-कद भर लेसी अै अणचींती बाथां

लजखाणा कूकरिया, टूकरिया पड़तां
हिरणां री डार भिळै सूकरिया लड़तां

घातेरण छिपकलियां, दबकणती चीती
मसवासण मिनकी, सब बुगलाई नीती

अंग-अंग सिलैपोस, बंध-बंध परबंध
अूजड़ सी गैल-गैल, सूळ-सूळ सरमंध


कुण समझाग्यो

कुण समझाग्यो मनैं ओ मरम
कै राजनीत रा अजगरां सूं लेय`र
दफ्तरां रा कमटाळू घूसखाऊ बाबुआं तकात
सगळां रा कांसां बाटकां में नित परूसीजै
रिकसो खींचतै म्हारै बूढ़ै बाप री थाकल फींचां रो खून-पसानो
कमठाणै भाठा फोड़ती
कै तगारी ले तिमंजलै चढ़ती-उतरती
म्हारी हेजल भा रा हांचळां रो सूखतो दूध
अर नानड़ियै नैं बोबै री ठोड गूंठो चुंघाती
म्हारी बैन रा झरता आंसू अर कसकतो काळजो।

कुण समझाग्यो मनैं
गरीबी हटाओ रा भासणां रो तर-तर खुलतो ओ भेद
ज्यूं झालर बाजतां अर संख फूंकीजता पाण
आपै ही उठता पग ठाकुरद्वारै कानी
अर साध पूरण रा सुपनां में
डोलरहींडै चढ़तो-उतरतो मुरझायो मन,
त्यूं ही तीस-तीस बरसां तक
आये पांचवैं साल
खोखां में घालता गया सुपनां रा पुरजिया
अर उडीकता गया अंधारै में आखड़ता
उण झीणै परगास री गुमसुदा किरण।
ओजूं घूमड़ै है बादळा आज
ओजूं अूकळै है अमूझो
कीड़्यां रै पांखां ओजूं निकळण लागगी है
व्यापगो है रिंधरोही मंे भींभर्यां रो भरणाट
उड़ता बधाऊड़ा देवण लाग्या है कसूण
पण अै मंडाण मंगळ मेघ रा नीं है भायां
सत्यानासी है अकाळ री आ बरखा
धान री ढिगलियां ढाती
छान-झूंपड़ा उजाड़ती
थोथा भरमां में पाळती
एकर फेर पंच-बरसी नींद ज्यूं औसरसी।
इन्दर रै घर राणी बण बैठी
आ महामाया
ओजूं फूंकसी थारा कानां में
'गरीबी हटाओ` रो गुपत ग्यान
अर थे समझता हुयां भी
फेर बण जाओला अणजाण
फेर दूध रै भोळै
पी जावोला घोळ्योड़ो चून
क्यूंकै गरीबी में रैणो थारी नियति है।

काळ

कुण कैवै काळ पड़ग्यो!
कठै है काळ
तिसाई धरती रै ताळवै चिप्योड़ा
बळबळती बाळू सूं भूंज्योड़ा
फूस री टापर्यां अर झूंपां रा
उजड़्योड़ा गांवां अर ढाणियां रा
अै निरभागिया जीव
क्यूं जलम लियो इण खोड़ में!

कायर हा, बुजदिल हा, बेवकूफ हा
आं रा पुरखा
जिका इण निरभागी धरती में,
लुक`र प्राण बचाया!
लूंठा हा, वीर हा, सायर हा वै
जिका माळ री धरती नैं दाबी राखी
अर देसनिकाळो दियो बां नाजोगां नैं

तनतोड़ मैनत कर भी
जिका दो जूण टुकड़ा नीं तोड़ पाया
गधां री ज्याूं लद-लद भी
जिका टेम पर दाणां री जगां लातां खाई
बांरै खातर धरती रा सुख कोनी सिरज्योड़ा
भाग री भ्रगु-संहिता में
बांरी कुंडळी नैं जगां कोनी!

अै अंजन रा कूआ, अै दाखां रा बाग
अै गरणाटा टैक्टर, अै कोसां लग खेत
अै छळछळती नहरां, अै कमतरिया चाकर
अै फारम, अै जीपां, आ दारू, आ चोधर
सुख रा अै साधन बांरा कियां हो सकै!
बीजळी सूं गरमायोड़ा
बीजळी सूं ठण्डायोड़ा
बीजळी सूं चमकायोड़ा
बीजळी ज्यूं पळपळाता
अै आलीसान बंगला!
बांरा कियां हो सकै!

अै कुन्नण ज्यूं दमकती, चन्नण ज्यूं महकती
नागकुंडाळा सा केसां रा जूड़ा सजावती
चोलीदार ब्लाउजां में
गोरै चीकणै डील रा पळका मारती
टेरालीन में सरसर करती
सरसराती कारां नैं दौड़ाती
अै नाजुकड़ी हिरणाखियां
बांरी कियां हो सकै!

धरती रो ओ सुरग बांरो है
जिका भुजबळ रा धणी है
जिका गज रो काळजो अर
मिनख रो मगज राखै
जिकां में हौंसलो है संघर्सा सूं जूझणै रो
अर सामरथ है घिरतै बखत सूं
बांथां भर लड़णै री। ........

चांद : आज अर काल

जुगां-जुगां तक किसन कन्हैया
बाल हठीला, ठिणक-ठिणक कर
रया मांगता चांद खिलूणो।
पण बापड़ी जसोदावां के करती
भर-भर जळ रा ठांव, दिखा कर
झूठ-मूठ रा चांद, भुळाती, लाल मनाती।

पण अब धन-धन भाग धरण रा
काल, जसोदावां जुग री घर हरख मनासी
गोदी में ले किसन लाडला
चांदड़लै रै देस रमासी
सुपनां री परियां नैं सांप्रत-
गिगन-झरोखै बैठ बुलासी, नाच नचासी।

जुगां-जुगां रा भरम टूटसी
आंधा बिसवासां गढ़ भिळसी
चरखा और डोकर्यां गुड़सी
सींगाळा मिरधा भी रुळसी
मामो चांद दिसावर जासी
अब टाबरिया क्यूं बिलामासी!

भेद प्रकटसा अब सदियां रा
पोथां और पुराणां रा सै
उपमा और कल्पनावां सै कूड़ी होसी
चांद लोक रा गढ़-गढ़ लिख्या गपोड़ा
अब तो चौड़ै आसी।

धरती रा जायां रो धूंसो
बण बादळ री गाज घमकसी
चांदड़लै में मिनख जात री धजा फरकसी
देवो-देव-परी सब लुळ-लुळ मुजरा करसी।

कविता री ओळूं साठी में

बाळपणै भोळोड़ी आंख्यां में अंजती सी
कूदती, किलकती, मुळकती ही कविता
रूस रूसणा में, झट मनती मनावणां में
आळ-भोळ बातां में पुळकती ही कविता

ताळी दे तत्तातोड़ लुकती लुकमीचणियां
कुरवायां रूंखां झट चढ़ती ही कविता
चरमरती मगरां पर मारदड़्यां चोटां में
दोटां मन-गिगनारां उड़ती ही कविता

गींधड़ रा गेड़ा में, घमरोळा निरतंती
धमाळां में डफां पर थिरकती ही कविता
उमगती चावां में, भावां भरमीजती सी
अणदेख्या सुपनां सरमीजती ही कविता

चानणियै डागळियै लीलै द्रग असमानां
बावळती चिड़ी सी विचरती ही कविता
अणबोल्यां बोलां रा अूंडा अरथावा-भर्या
रूं-रूं में छंद मधर रचती ही कविता

उळझगी गिरस्थी रे तिसना-छळावै में
लूण-तेल-लकड़ी में फंसगी ही कविता
ज्यूं-ज्यूं करी कोसिसां बांह पकड़ खींचण री
त्यूं-त्यूं और गहरी ही धंसगी ही कविता

आज जद ढळती में चित आई परणेतण
डोकरड़ी पीवरियै अूठ चली कविता
बुध रां चिमगादड़ां घैर्यो मन-ढूंढ़ो अब
भली करी बखत सिर अूठ चली कविता

ओ कुण लुक-छिप आवै

नैण रिझावै मन मुळकावै, रूंआ रास रचावै
ओ कुण लुक-छिप आवै

सोई धरण जगावै, आंगणियै हींगळू ढुळावै
पांख पंखेरू गीत गुवावै, किरणां नाच नचावै
सांझ-गिगन मंे रांगरंगोली छिबिया कुण चितरावै
दूधां धोई रातड़ली में कुण इमरत बरसावै
ओ कुण लुक-छिप आवै

सांसां री सोरम सूं भोळा बायरिया बहकावै
फूलां फाग मचावै, हरिया बागां नैं महकावै
कळियां नैं इतरावै, लोभी भंवरां नैं बिलमावै
आंबलियै री डाळ उणमणी कोयलड़ी चहकावै
ओ कुण लुक-छिप आवै

काजळिया नैणां री कोरां में बैठ्यो सरमावै
फूल गुलाबी मुखड़ै पर क्यूं लाज-गुलाल लगावै
अंगड़ाया सूं छेड़ै, दरपण में गुपचुप बतळावै
अूंची मेड़ी लाल पिलंग रा सुपनां में भरमावै
ओ कुण लुक-छिप आवै

हेलो

संख फूंक्या देवरां
बाज्या ज जंगी ढोल
हेलो आइयो रण खेतर रो
उठ, जाग मा रा लाडला
अब बखत आयो चेत रो!

लोरियां री ताल सोवन-पालणै हुलराइयो
दूधां-धार धपाइयो, निस नैणां जाग जपाइयो
अब उठ, सपूती रा पूत, मांगूं मोल मूंघै हेत री
अब बखत आयो चेतरो
हेलो आइयो रण खेत रो!

जामण जाया, बीर म्हारा, गोद मोद खिलाइया
नित सलूणै, राखड़ी रा तार थे बंधवाइया
उठ, आरतड़ै रै नेग मांगू, सीस दुसमी दैत रो
हेलो आइबो रण खेत रो।

चौमुख दिवलो जोय, रंगमहलां ज सेज संवारती
बादीलै नैं बांहड़ी धर सीस, मुळक मनावती
अब जाग लसकरिया! लजै, सिणगार धण परणेत री
अब बखत आयो चेत रो
हेलो आइयो रणखेत रो।

मेवड़ला झड़ सींच, सूखी धरण धन निपजाइयो
काढ़ ऊंडै काळजै सूं नीर ठंडो प्याइयो
अब जाग मुरधररिया! चुकावण करज बाळू रेत रो
अब बखत आयो चेत रो
हेलो आइयो रण खेत रो।

वीरभोग्या

रूप री रास जिण नैण बिलमाइया
जुद्ध री झाळ तिण नैण प्रजळाइया

रंग री रैण जिण सैण रस माणियो
गाजतै जैण तिण जीस अूफाणियो

हींगळू ढोलियै संग हिरणाखियां
सुरग रो स्वाद जिण सांपरत जाणियो
हींसता हैवरां पीठ घर मांडियां
खीझ भर खींच तिण वीर सर ताणियो

काजळी केस लट लाडली लहरतां
बादळी घेरियो चांद जिण चूमियो
सांघणी फौज रा ढोल घण गहरता
बैरियां घेरियो वीर वो झूमियो

रूप सिणगार सुख स्वाद सब सिस्टि रा
वीर रै भोग विध विरचिया चाव सूं
रूप रस गंध री हाट उण लूट ली
ओज भर अंग जिण साजिया घाव सूं।

सुरसत नैं अरज

किण नै बिड़दाऊ ए सुरसत किण रो जस गाअूं
किण नैं म्हारोड़ा गीतां जुग-जुग पूजवाऊं, अमर बणाऊं

वाणी तूं दीन्ही ए मायड़, किरपा तूं कीन्ही
वाणी रै मोत्यां किण री माळ पुवाऊं, हार सजाऊं

धरती लचकावै कुण वो, आभै नैं तोलै
सातूं समदां री लहरां जिण री जय बोलै
इसड़ो नरसिंह बतादे जिण रो जस गाऊं, जिण नैं बिड़दाऊं

लिछमण सी झाळां जिण री हणवंत सी फाळां
रघुवर सा बाणां जिण रै परळै री ज्वाळा, चण्डी विकराळा
इसड़ी रामायण वाळो राम मिलादे ए मायड़ जिण नैं पुजवाऊं

जिण रा होठां पर सुर रा समद हिलोळै
जिण रा बैणां में गीता ज्ञान झिकोळै
इसड़ो सुद र सण वाळो स्याम दिखादे ए जामण जिण रो जस गाऊं

बलमीकी नावंू मैं तो, द्वैपायन ध्याअूं, तुळसी मनाअूं, सुर रो सूर बुलाऊं
जिण री लीला रा सौ-सौ छन्द रचाऊं
किण नैं बिड़दाऊं ऐ सुरसत किण रो जस गाऊं

हेली ए प्यारी साजन मिलबा जाऊं

मळ-मळ अंग निसंग रगड़-रगड़ कर न्हाऊं
कुन्नण काया तप उजळाऊं गुण-चन्नण चरचाऊं
सील तणो सोरम सरसाऊं निरगुणियै ने ध्याऊं

कंवळा केस कसायां धोऊं परगै हाथ निचाऊं
त्याग तणै झीणै तावड़ियै डागळ बैठ सुकाऊं
आई नेम नेवगण चतरी पीढ़ो ढाळ बिठाऊं

आटी, डोरा, ग्यान-कांगसी, दीपत बोर गुंथाऊं
काजळ, टीकी, बिंदली, लाली मेंहदी हाथ मंडाऊं
सज सोळा सिणगारां चुड़लो अमर सुहाग सजाअूं

पहर पटोळो धम्म घुमंतो घाघरियो घमकाऊं
रंग राचै कांचळी कसूमल घूंघटिये सरमाऊं
अणहद नाद रूणझुणै पायल रंगमहल जद जाऊं
रोम रोम में फुरणा व्यापी सरबस पीव समाऊं

हेली ऐ प्यारी साजन मिलवा जाऊं

मरोड़

कांईं मरोड़ धरै म्हारा मनड़ा कांईं गुमान करै
काया काची गार प्रिजापत हाथां रूप धरै
लख-लख जूण रची सिस्टी मैं पळ-पळ जलम मरै
पीपळ पात पड़ी जळ बुंदकी झोलो लाग झरै
सिख-नख रा सिणगार संजोवै जोबन गरब धरै
फूल खिलै सोरम गरणावै सांझ ढळ्यां बिखरै
बाग-बगीचा महल-माळिया चितरंग चोज करै
अूजड़ खेड़ां ढमढ़ेरां री अब कुण साख भरै
अनधन-लिछमी गरथ भंडारां जुग रा जतन करै
एक अगन चिणगी सूं थारा सारा काज सरै
रच छळ-छंद कपट विस्तारै निस दिन ठगी करै
खुद रे जाळ फंसी खुद मकड़ी देख कुमोत मरै
पद-मद में भूखां भोळां नैं चींथ न यूं इतरै
उछळै गींड गगन में वो ही धरण पड़्यो ठुकरै
कांईं मरोड़ धरै म्हारा मनड़ा कांईं गुमान करै

पीड़

मुळक-मुळक दुख सह म्हारा जिवड़ा हंस-हंस पीड़ पळोट
जिण दी काया उण दुख दीयो वो ही भोगण वाळो
थारी अपणी चीज न कोई जग भरमां रो कोट
मन दुख देवै मन सुख सेवै मन ही कामणगारो
मन कठपुतळी नाच नचावै वो पड़दै री ओट
पीड़ पंखेरू उडतो-फिरतो बिरछ-बिरछ री डाळां
वा बड़भागण कायक जिण घर लेवै दरद करोट
दुख-सुख तो रथ रै पैड़ै ज्यूं फिर-घिर आवै-जावै
संग जनमी संग चाल्यां जासी सुख-दुख री आ जोट
अगन तप्यां सूं सोनो उजळै ओखद सूं रस चूवै
दुख री दाझ करम रा काटै भव-भव रा सै खोट
दुख-बिणजारो बाळद ल्यायो सस्तो देवै सौदो
पैलां पूग बिसाले जिवड़ा करूणा री भर पोट

चाल-कुचाल

चाल कुचाल हुई थारी जिवड़ा बाण कुबाण पड़ी
जिण थारा लाड लडाया जिवड़ा जिण थानैं जनम दियो
जिण री महर खेलिया खाया रम-रम करी थड़ी
अूठत-बैठत सोवत-जागत अूमर बीत चली
उणनैं पण तूं याद कियो ना कदे एक घड़ी
किण कारण पिरथी पर आयो, कांईं काम कर्यो
कुणसी गरज सरी थारै संू कुणसी पार पड़ी
किसी भुळावण किसा संदेसा कुणनै मांड कह्या
मोटा धणी न रीझै थारी बातां बड़ी-बड़ी
टेढ़ो सोचै टेढ़ो चालै टेढ़ घणी बरतै
गत उळटी ना बिसरी थारी जनम-जनम पकड़ी
कुबदी मन अळबादी इन्दर्यां हरदम छेड़ करै
बाद करे अै सिर चढ़ बैठी थारी मती हड़ी
चाल-कुचाल हुई थारी जिवड़ा बाण कुबाण पड़ी





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