रावत सारस्वत : एक परिचय

- सुधीर सारस्वत

इतिहासविदों एवं पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार सभी प्राचीन महान सभ्यताएं महान नदियों के किनारे ही विकसित हुईं। उन्हीं नदी घाटियों के किनारे बसे कबीलों एवं सभ्यताओं के नाम भी उन्हीं नदियों के नामों पर पड़े। सिन्धु घाटी सभ्यता, सरस्वती घाटी सभ्यता। कालांतर में उनके किनारे बसने वाले लोगों के नाम, गोत्र इत्यादि भी उसी के अनुसार प्रचलित हुए। इसी प्रकार प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे बसने वाले भी सारस्वत कहलाये। स्व. रावत सारस्वत के पूर्वज भी प्राचीन काल में कश्मीर (प्राचीन सरस्वती नदी के उदगम् स्थल) से विस्थापित होकर पहले पंजाब, हरियाणा तथा बाद में राजस्थान के शेखावाटी भू भाग में आकर बसे। उन्हीं पूर्वजों में से एक परिवार बिसाऊ (झुंझुनूं) में बसा। इसी परिवार मंे एक पूर्वज केदारनाथ सारस्वत अपने रिश्ते के दूसरे परिवार जो चूरू में बसा था के गोद आए। श्री केदारनाथजी के सुपुत्र श्री महादेवप्रसाद हुए जो बीकानेर रियासत में थानेदार रहे। श्री महादेवप्रसाद के यहां पांच पुत्र हुए।

जन्म :- श्री रावत सारस्वत का जन्म २२ जनवरी, १९२१ को चूरू में एक साधारण ब्राघ्ण परिवार में पिता श्री हनुमानप्रसाद सारस्वत तथा माता बनारसी देवी के यहां हुआ। अपने ८ बहन भाईयों (४ बहन तथा ४ भाई) में श्री रावत सारस्वत सबसे बड़े थे। वर्तमान में इस पीढ़ी में कोई भी भाई या बहिन विद्यमान नहीं है।

शिक्षा :- प्रारम्भिक शिक्षा चूरू में ही हुई। पढ़ाई में होशियार होने के कारण दादा महादेवप्रसाद के वे विशेष प्रिय रहे। परिवार में ताऊ श्री बालचन्द जो एम.ए. बी.टी. तक शिक्षित थे तथा चूरू लोहिया कॉलेज में कार्यरत् रहे, उनके अलावा चाचा श्री मुरलीधर सारस्वत एम.ए. साहित्यरत्न थे तथा ऋषिकुल चूरू में कार्यरत रहे। पिता तथा बाकी दो चाचा कोई विशेष शिक्षा अर्जित नहीं कर पाये। श्री रावत सारस्वत ने आठवीं तक बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त कर छात्रवृति प्राप्त करने का जो सिलसिला शुरु किया उसे बी.ए. तक कायम रखा।

१. दसवी सन् १९३८ बीकानेर बोर्ड (पूरे स्टेट में फर्स्ट क्लास)
२. बी.ए. सन् १९४१ (आगरा विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)
३. एम.ए. सन् १९४७ (नागपुर विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)
४. एल.एल.बी. १९४९ (राजस्थान विश्वविद्यालय - प्रथम श्रेणी)

विवाह :- सन् १९४१ में बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त, परिवार वालों के आग्रह पर आपका विवाह सिंघाना (खेतड़ी तहसील) के सागरमल जी वैद्य की पुत्री कलावती देवी के साथ १९४२ में सम्पन्न हुआ।

१९४४ में प्रथम पुत्र सुधीर सारस्वत
१९४७ में पुत्री मंजूश्री
१९४९ में पुत्री नीलिमा
१९५१ में पुत्री मधु
१९५३ में पुत्र शेखर सारस्वत

परिवार में २ पुत्र तथा ३ पुत्रियां (ऊपर वर्णित) हुई। बड़ा पुत्र सिविल इन्जीनियर (सन् २००० में सेवानिवृत) तथा छोटा पुत्र (एम.एस.सी. भूगर्भ विज्ञान - बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) वर्तमान में सेवानिवृत तथा तीनों बहिनें विवाहित जीवन व्यतीत कर रही हैं।

कार्य एवं पद :-
१९४१ से १९४४ तक अनूप संस्कृत लाईब्रेरी, बीकानेर में पुराने संस्कृत, डिंगल, पिंगल एवं प्राकृत के ग्रंन्थों का कैटेलॉग बनाने मं सहायक लाईब्रेरियन के रूप में।
१९४५ से १९५२ - पत्रकार एवं प्रेस संचालक के रूप में जयपुर में ।
(साधना प्रेस तथा राजपूत प्रेस)
१९५२ से १९८२ - इण्डियन रेडोक्रास सोसाईटी के संगठन सचिव के रूप में।
१९५५ से १९८८ - विभिन्न संस्थाओं में सचिव, मैनेजर तथा सभापति।

लिखित-प्रकाशित/अप्रकाशित पुस्तकों की सूची -

१. मौलिक
(प्रकाशित) -
(१) बरबत रै परवाण (कविताएं) सन् १९८९
(२) मीणा इतिहास
(३) दुरसा आढा सन् १९८३
(४) पृथ्वीराज राठौड़ (भारतीय इतिहास के निर्माता) सन् १९८४
(५) आईडेनटिटी ऑफ रावल्स सन् १९८२

(अप्रकाशित)
(१) अणगाया गीत
(२) राजस्थानी भाषा का संक्षिप्त इतिहास
(३) आज का राजस्थानी साहित्य
(४) संक्षिप्त राजस्थानी शब्द कोश।

२. अनुवादित
(प्रकाशित) -
(१) बंसरी (रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाटक का राजस्थानी में अनुवाद)
(२) बादळी (चन्द्रसिंह के राजस्थानी काव्य का हिन्दी अनुवाद)
(३) जफरनामो - (गुरु गोविन्द सिंह के फारसी काव्य का अनुवाद १९७५)

(अप्रकाशित)
(१) ऋग्वेद की ऋचाएं
(२) पंचासिका (पुराना संस्कृत ग्रन्थ) विल्हण द्वारा रचित
(३) गाथा सतसई (प्राचीन प्राकृत ग्रंथ)

३. संपादन
(प्रकाशित)
(१) चंदायन, १९६०
(२) राजस्थान के कवि भाग २, १९६१
(३) आज रा कवि (वेदव्यास के साथ)
(४) आज रा कहाणीकार (रामेश्वरदयाल श्री माली के साथ, १९७६)
(५) दळपत विलास प्राचीन गद्य ग्रन्थ १९६०
(६) महादेव पार्वती री वेलि प्राचीन पद्य, १९६०
(७) राजस्थान रा लोकगीत १९६०
(८) राजस्थान के साहित्यकार परिचय कोष (दो भाग)
(९) संक्षिप्त राजस्थानी शब्द कोश
(१०) प्रबन्ध पारिजात १९८२ (डॉ. हीरालाल माहेश्वरी के साथ) साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित
(११) आज री कहाणियां (श्री प्रेमजी 'प्रेम` के साथ)
(१२) जनकवि उस्ताद (रामेश्वरदयाल श्रीमाली के साथ, १९७२)
(१३) चैत रा चितराम
(१४) डिंगलगीत (प्राचीन पद्य)
(१५) प्राचीन राजस्थानी कवि।

४. अंग्रेजी
(प्रकाशित)
(१) फीडम मूवमेंट ऑफ राजस्थानी लिटघ्ेचर
(२) कल्चर डिक्सनरी ऑफ राजस्थान
(३) सोसियोइकोनोमिक लाईफ इन मेडिवल राजस्थान एज डेपिक्टेड इन राजस्थान प्रोस कोनीकल्स
(४) कान्हड़ दे प्रबन्ध- ए कल्चरल स्टडी

५. कविताएं
(प्रकाशित)
(१) सुरसत नै अरज
(२) ओ कुण लुक छिप आवै
(३) हेलो
(४) पड़ुतर
(५) मरण रो वरण आज कुण करसी
(६) ओळ्यूंड़ी
(७) परमातम री किरण

६. डिंगलगीत
(प्रकाशित)
(१) महामाया
(२) सुमनेश जोशी रो मरसियो
(३) अगरचन्द नाहटा रो मरसियो।

७. नई कविताएं
(प्रकाशित)
(१) घूंघट
(२) जोधा जाग

८. आत्मबोध :- पीड़।
इसके अलावा बहुत से फुटकर अप्रकाशित लेख इत्यादि भी हैं।

कार्यभार-दायित्व निर्वहन-
संपादक :- मरुवाणी - राजस्थानी भाषा की प्रथम अग्रणी पत्रिका (१९५३)
सचिव :- जयुपर। राजस्थान भाषा प्रचार सभा (राजस्थानी भाषा की पारखी विशारद तथा प्रथमा परीक्षाओं का संचालन)
सचिव :- राजस्थान लेखक सहकार समिति, जयपुर।
जनरल मैनेजर तथा सचिव :- राजस्थान स्टेट कॉआपरेटिव प्रिंटर्स लिमिटेड, जयपुर।
सभापति :- राजस्थान भाषा साहित्य संगम अकादमी, उदयपुर।
सदस्य (गवर्निंग बोर्ड) :- राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर।
सदस्य राजस्थानी विषय कमेटी :- जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर।
सदस्य (सलाहकार/संपादक मंडल) :- वरदा, मरुश्री, बागड़ संदेश, विश्वम्भरा।

विभिन्न सेमीनारों तथा सिंपोजियमों में उनके द्वारा पढ़े गये पेपर :-
१. ''ट्रांस्लेटर्स वर्कसोप`` ऑर्गेनाईज्ड एट भोपाल बाइ साहित्या एकेडमी, न्यू देलही।
२. ''ड्रामा लिस्ट वर्कसोप`` ऑर्गेनाईज्ड एट वारानसी बाइ साहित्या एकेडमी, न्यू देलही।
३. ऑल राजस्थान राइइटर्स कॉन्फ्रेन्स एट बीकानेर : ऑर्गेनाईज्ड बाइ राजस्थान साहित्य एकेडमी, उदयपुर।
४. राजस्थान रिसर्च सेमीनार एट उदयपुर।
५. कॉण्ट्रिब्‍यूटेड आर्टिकल्स इन ''कोटेम्पोरेरी इन्डियन लिट्रेचर`` ऑफ केरला साहित्य एकेडमी, राजस्थान गजतीर।

विभिन्न पत्रिकाएं एवं अखबार जिनमें उनके लेख छपे :-
१. भारतीय साहित्य - नई दिल्ली अकादमी द्वारा प्रकाशित।
२. कान्टैपोरेरी भारतीय साहित्य - नई दिल्ली अकादमी द्वारा प्रकाशित।
३. मधुमती - उदयपुर
४. जागती जोत - बीकानेर
५. वरदा - बिसाऊ
६. राजस्थानी भारती - बीकानेर
७. सरस्वती - इलाहबाद
८. राष्‍ट्रजा - कलकघा
९. राष्‍ट्रदूत - जयपुर
१०. राजस्थान पत्रिका - जयपुर
११. विश्वम्भरा - बीकानेर
१२. शोध पत्रिका - उदयपुर
१३. जनमंगल - उदयपुर
१४. मरुभारती - पिलानी
१५. बिणजारो - पिलानी।
इसके अलावा बहुत-सी पत्रिकाओं के विशेषांकों एवं अन्य जनरलों में भी अनेक लेख प्रकाशित हुए।

पुरस्कार -
(१) राजस्थानी भाषा और साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए ''विशिष्ट साहित्यकार`` पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा सन् १९७७ में।
(२) ''दीपचन्द साहित्य पुरस्कार`` राजस्थानी भाषा के योगदान के लिए सन् १९८८
(३) उपराष्टघ्पति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा दिल्ली में ''राजस्थान रत्नाकर`` पुरस्कार १९८९ में।
(४) 'बखत रै परवाण` पुस्तक पर मरणोपरान्त राजस्थान साहित्य संगम अकादमी, बीकानेर द्वारा पुरस्कार सन् १९९०

स्‍वर्गवास-
श्री रावत सारस्वत का स्वर्गवास १६ दिसम्बर, १९८९ को हुआ।

कामां रै ओळै-दोळै रावत सारस्वत

- दुलाराम सहारण

गांव, नगर अर महानगरां मांय पूत तो घणां ही जामै। पण सपूत कम ही हुवै। चूरू री धरती घणी रत्ना री खान है अर सदीव सूं रत्न निपजती रैयी है। रावत सारस्वत रो नांव ही उणां रत्नां भेळो है। जका आपरै अणथक कामां रै पाण सपूत बण्यां अर आखै राजस्थान मांय आपरै नांव रै साथै-साथै चूरू नगर रो नांव ही सिरै चढ़ायो।
रावत सारस्वत रो जलम 22 जनवरी 1921 ई. नैं आपणै नगर मांय पं. हनुमान प्रसाद सारस्वत रै आंगणै हुयो। इणां री स्कूल री पढ़ाई बागला स्कूल मांय अर ग्रेजुएशन री पढ़ाई डूंगर कॉलेज बीकानेर मांय हुयी। ग्रेजुएशन पछै एम.ए., एल.एल. बी री परीक्षावां ही रावत पास करी।
बीकानेर पढ़ाई रै बगत राजस्थानी रा थम्म नरोत्तमदासजी स्वामी रा रावतजी खास चेला हा। बै उणां रा गुरुजी हा। नरोत्तम जी रो उणां ऊपर इस्यो असर पड़्यो कै बै उणां रै रंग मांय ही रंगीजग्या। राजस्थानी भासा री पीड़ बीं टैम उठती-सी ही। स्वामीजी उण पीड़ रा पळोटण हार हा अर भासा आंदोलन रा एक जबरा भाग हा। स्वामीजी री बात नै रावतजी ही समझी अर आपरो सगळो ध्यान राजस्थानी भासा कानी लगा दियो। अठै आ बात कैवणी जाबक सही रैयसी कै उणां रो ओ राजस्थानी हेत रो निर्णय ही महताऊ रैयो जका उणा नैं एक राजस्थानी इतियास मांय देव पुरख बणा दिया अर बै अमर होग्या।
पढ़ाई पछै बीकानेर मांय रावत ही रैया अर रैवास री बगत रावतजी बठै री अनूप संस्कृत लाइब्रेरी मांय लाइब्रेरियन बणग्या। लाइब्रेरी अर सादुल राजस्थानी इन्स्टीट्यूट, बीकानेर रै जबरै संजोग सूं रावत जी एक खास विधा मांय प्रवीण होग्या अर बा विधा ही पुराणा हस्तलिखित ग्रंथा अर खासकर डिंगल ग्रंथा मांय महारथी होवण री। 1948 रै अड़ैगड़ै रावत जी बीकानेर सूं जैपुर पूग्या अर जैपुर उणां रो सदीव रो रैवास बणग्यो। जैपुर मांय साहित्य सेवा रै साथै समाज सेवा रै कारण रावतजी आपरौ एक निरवाळी पिछांण बणाली।
एकर साहित्‍यकार भंवरसिंह सामौर सा'ब बतावै हा कै बै जद राजस्थान विश्वविद्यालय मांय पढ़ता तो रावतजी जैपुर मांय शिखर पर हा। रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत अर कुम्भाराम जी आर्य सागै उणांरी जबरी जोड़ी ही। राजस्थानी रो हेत रावतजी मांय कित्तो हो इण री परतख अंदाजो सामौर सा'ब री ही एक बात सूं लाग्यो कै रावतजी विश्वविद्यालय रै हॉस्टलां मांय चाल'र खुद आवज्यावंता अर राजस्थानी रै पख री बातां करता। नुंवा लिखारा नै राजस्थानी सूं जोड़ता अर एक टीम त्यार करण री सोचता। भंवरसिंह सामौर सा'ब अर बैजनाथ पंवार सा'ब नै जे आपां रावतजी री ही देन मांना तो कीं अणओपती बात कोनी।
जैपुर मांय रावतजी रेडक्रास सोसाइटी रै मारफत घणा सक्रिय हा। अर ओ कारण रैया कै राजस्थानी रै प्रचार-प्रसार खातर रावतजी नै कदै ही मंच रो तोड़ो कोनी आयो।
raajasthaanii भासा खातर रावत जी रै योगदान रो जे जिकर करां तो उणां रा दो काम ही सगळां साम्ही भारी पड़ै। अै दो काम हा - राजस्थानी भासा री परीक्षावा सरू करणी अर दूजी मरुवाणी पत्रिका सरू करणी।
रावतजी मरूवाणी सरू करी तो राजस्थानी रै एक नये जुग रो सिरजण हुयो। मरुवाणी रै मारफत राजस्थान रै कुण-कुणै मांय लेखक त्यार होग्या। आज जे राजस्थानी रै ठावा लेखकां री पैली रचनावां रो हिसाब लगावां तो घणकरां क लेखका री रचना मरूवाणी रै नांव मंडै। आज जे मरूवाणी रा अंका रो निरखण करां तो देख'र अचूंभो हुवै कै इत्ती जोरदार पत्रिका काढ़ण खातर रावतजी कित्ती साधना करी होसी। आज शोध छात्रां मांय मरूवाणी एक ठावी चीज है। बै आपरो घणकरो सो काम मरूवाणी रै पेटै ही सळटाय लेवै।
मरूवाणी रै साथै-साथै ही रावत जी राजस्थानी भासा प्रचार सभा री थापणा ही करी जकी राजस्थानी भासा मांय चार परीक्षावां सरू करी । अै परीक्षावां तीस साल ताणी होयी अर आखै राजस्थानी मांय होयी। एक अंदाजो लगावां तो हिवड़ो गुमेज सूं भरै कै बा परीक्षावां रै पाण कित्ता राजस्थानी लोगां आपरी मायड़ भासा रो लिखण पढण रो ग्यान कर्यो होसी। चूरू मांय अै परीक्षावां बैजनाथजी पंवार करवांवता जकां रो एक न्यारी सोनल रपट है।
रावतजी रो राजस्थानी भासा मांय जोगदान रो लेखो तो राजस्थानी भासा रा सगळा इतिहास ग्रंथ देवै। पण उणां रै लेखन कानी निजर पसारां तो ओ गरब हुवै कै बै कवि हा , कै अनुवादक। बै नाटककार हा कै निबंधकार। बै संपादक हा कै समीक्षक। बै राजस्थानी रा इंन्साइक्लापिडिया हा कै इतिहासकार।
रावतजी सगळी विधावां मांय आपरो लेखन कर्यो। कवि री भावना नै बै पळोटी तो गद्यकार री भावना नै बा विस्तार दियो। चावा साहित्‍यकार हरिरामजी मीणा नै तो अंचम्भो होयो जद बै रावत जी रो लिखेड़ो 'मीणा जाति रो इतिहास' देख्‍यो। बाळ री खाल काढ़ण रा ग्यानी पुरख हा रावतजी।
म्हैं अठे रावतजी सगळी किताबां रो जिकर कोनी करू। बस कीं खास पोथ्यां रा नाम गिणाद्यूं। रावत जी दुरसा आढ़ा, पृथ्वीराज राठौड़, बंसरी, जनकवि उस्ताद, महादेव पार्वती री बेलि, दळपत विलास, डिंगळ गीत अर जफरनामो। अै पोथ्यां रावतजी री विद्वता री साख भरै। रावतजी राजस्थानी रै साथै-साथै अंग्रेजी अर हिन्दी रा ही आधिकारिक विद्वान हा। उणां री तीन-चार पोथ्यां अंग्रेजी मांय ही है। जकी मांय सूं '' पोएटस टू वर्डस एंड लिटरेचर'' घणी चावी हुयी।
रावतजी नै उणां री साहित्य सेवा सारू घणा सनमान अर इनाम मिल्या। उणां री एक लाम्बी लिस्ट है। रावतजी भलां ही राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी , बीकानेर , केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली रा मानीजता सदस्य अर परामर्श मण्डल रा चावा थम्ब रैया पण चूरू सदा ही ''घर को जोगी जोगणो .....'' मान्यो।
राजस्थानी री घणी सेवा करता-करता रावतजी राजस्थानी रा एक सबळा सिरजणधरमी बणग्या। उणां री आपरी न्यारी ओळखांण होग्यी। रावतजी रो जबरो नाव हुग्यो।
इस्या नांव रा धणी रावत जी रो सुरगवास 16 दिसम्बर, 1989 ई. हुयो।
लारलै कीं बगत सू बैजनाथजी, सामौरजी अर दुर्गेशजी सूं रावत जी पेटै बंतळ हुयी तो एक बात साफ हुयी कै आज दुनिया मतलब री है। जीवंतै मिनख सूं मतलब हुवै तो उण री घणी गुलामी करै पण उण रै जायां पछै कुण गुलामी करै ? आज तो जमारो इस्यो है कै कोयी घणो खास हुवै अर बीं सूं घणा ही फायदा लियेड़ा हुवै। अर बो जे मरज्या अर बीं रै परिवार मांय लारनै कीं मतलब निगै नीं आवै तो आज रो मिनख बिण रै दाग मांय ही जावणो जरूरी कोनी समझै। सगळा मतलब रा मीत हुवै।

आखर मांय रावत जी सारस्वत नै उणां रै काम पेटै याद करता थकां म्हैं उणां नैं घणो निवण करू कै बै राजस्थानी भासा खातर जबरो काम कर्यो अर राजस्थानी लेखका री एक फौज खड़ी करी।