कामां रै ओळै-दोळै रावत सारस्वत

- दुलाराम सहारण

गांव, नगर अर महानगरां मांय पूत तो घणां ही जामै। पण सपूत कम ही हुवै। चूरू री धरती घणी रत्ना री खान है अर सदीव सूं रत्न निपजती रैयी है। रावत सारस्वत रो नांव ही उणां रत्नां भेळो है। जका आपरै अणथक कामां रै पाण सपूत बण्यां अर आखै राजस्थान मांय आपरै नांव रै साथै-साथै चूरू नगर रो नांव ही सिरै चढ़ायो।
रावत सारस्वत रो जलम 22 जनवरी 1921 ई. नैं आपणै नगर मांय पं. हनुमान प्रसाद सारस्वत रै आंगणै हुयो। इणां री स्कूल री पढ़ाई बागला स्कूल मांय अर ग्रेजुएशन री पढ़ाई डूंगर कॉलेज बीकानेर मांय हुयी। ग्रेजुएशन पछै एम.ए., एल.एल. बी री परीक्षावां ही रावत पास करी।
बीकानेर पढ़ाई रै बगत राजस्थानी रा थम्म नरोत्तमदासजी स्वामी रा रावतजी खास चेला हा। बै उणां रा गुरुजी हा। नरोत्तम जी रो उणां ऊपर इस्यो असर पड़्यो कै बै उणां रै रंग मांय ही रंगीजग्या। राजस्थानी भासा री पीड़ बीं टैम उठती-सी ही। स्वामीजी उण पीड़ रा पळोटण हार हा अर भासा आंदोलन रा एक जबरा भाग हा। स्वामीजी री बात नै रावतजी ही समझी अर आपरो सगळो ध्यान राजस्थानी भासा कानी लगा दियो। अठै आ बात कैवणी जाबक सही रैयसी कै उणां रो ओ राजस्थानी हेत रो निर्णय ही महताऊ रैयो जका उणा नैं एक राजस्थानी इतियास मांय देव पुरख बणा दिया अर बै अमर होग्या।
पढ़ाई पछै बीकानेर मांय रावत ही रैया अर रैवास री बगत रावतजी बठै री अनूप संस्कृत लाइब्रेरी मांय लाइब्रेरियन बणग्या। लाइब्रेरी अर सादुल राजस्थानी इन्स्टीट्यूट, बीकानेर रै जबरै संजोग सूं रावत जी एक खास विधा मांय प्रवीण होग्या अर बा विधा ही पुराणा हस्तलिखित ग्रंथा अर खासकर डिंगल ग्रंथा मांय महारथी होवण री। 1948 रै अड़ैगड़ै रावत जी बीकानेर सूं जैपुर पूग्या अर जैपुर उणां रो सदीव रो रैवास बणग्यो। जैपुर मांय साहित्य सेवा रै साथै समाज सेवा रै कारण रावतजी आपरौ एक निरवाळी पिछांण बणाली।
एकर साहित्‍यकार भंवरसिंह सामौर सा'ब बतावै हा कै बै जद राजस्थान विश्वविद्यालय मांय पढ़ता तो रावतजी जैपुर मांय शिखर पर हा। रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत अर कुम्भाराम जी आर्य सागै उणांरी जबरी जोड़ी ही। राजस्थानी रो हेत रावतजी मांय कित्तो हो इण री परतख अंदाजो सामौर सा'ब री ही एक बात सूं लाग्यो कै रावतजी विश्वविद्यालय रै हॉस्टलां मांय चाल'र खुद आवज्यावंता अर राजस्थानी रै पख री बातां करता। नुंवा लिखारा नै राजस्थानी सूं जोड़ता अर एक टीम त्यार करण री सोचता। भंवरसिंह सामौर सा'ब अर बैजनाथ पंवार सा'ब नै जे आपां रावतजी री ही देन मांना तो कीं अणओपती बात कोनी।
जैपुर मांय रावतजी रेडक्रास सोसाइटी रै मारफत घणा सक्रिय हा। अर ओ कारण रैया कै राजस्थानी रै प्रचार-प्रसार खातर रावतजी नै कदै ही मंच रो तोड़ो कोनी आयो।
raajasthaanii भासा खातर रावत जी रै योगदान रो जे जिकर करां तो उणां रा दो काम ही सगळां साम्ही भारी पड़ै। अै दो काम हा - राजस्थानी भासा री परीक्षावा सरू करणी अर दूजी मरुवाणी पत्रिका सरू करणी।
रावतजी मरूवाणी सरू करी तो राजस्थानी रै एक नये जुग रो सिरजण हुयो। मरुवाणी रै मारफत राजस्थान रै कुण-कुणै मांय लेखक त्यार होग्या। आज जे राजस्थानी रै ठावा लेखकां री पैली रचनावां रो हिसाब लगावां तो घणकरां क लेखका री रचना मरूवाणी रै नांव मंडै। आज जे मरूवाणी रा अंका रो निरखण करां तो देख'र अचूंभो हुवै कै इत्ती जोरदार पत्रिका काढ़ण खातर रावतजी कित्ती साधना करी होसी। आज शोध छात्रां मांय मरूवाणी एक ठावी चीज है। बै आपरो घणकरो सो काम मरूवाणी रै पेटै ही सळटाय लेवै।
मरूवाणी रै साथै-साथै ही रावत जी राजस्थानी भासा प्रचार सभा री थापणा ही करी जकी राजस्थानी भासा मांय चार परीक्षावां सरू करी । अै परीक्षावां तीस साल ताणी होयी अर आखै राजस्थानी मांय होयी। एक अंदाजो लगावां तो हिवड़ो गुमेज सूं भरै कै बा परीक्षावां रै पाण कित्ता राजस्थानी लोगां आपरी मायड़ भासा रो लिखण पढण रो ग्यान कर्यो होसी। चूरू मांय अै परीक्षावां बैजनाथजी पंवार करवांवता जकां रो एक न्यारी सोनल रपट है।
रावतजी रो राजस्थानी भासा मांय जोगदान रो लेखो तो राजस्थानी भासा रा सगळा इतिहास ग्रंथ देवै। पण उणां रै लेखन कानी निजर पसारां तो ओ गरब हुवै कै बै कवि हा , कै अनुवादक। बै नाटककार हा कै निबंधकार। बै संपादक हा कै समीक्षक। बै राजस्थानी रा इंन्साइक्लापिडिया हा कै इतिहासकार।
रावतजी सगळी विधावां मांय आपरो लेखन कर्यो। कवि री भावना नै बै पळोटी तो गद्यकार री भावना नै बा विस्तार दियो। चावा साहित्‍यकार हरिरामजी मीणा नै तो अंचम्भो होयो जद बै रावत जी रो लिखेड़ो 'मीणा जाति रो इतिहास' देख्‍यो। बाळ री खाल काढ़ण रा ग्यानी पुरख हा रावतजी।
म्हैं अठे रावतजी सगळी किताबां रो जिकर कोनी करू। बस कीं खास पोथ्यां रा नाम गिणाद्यूं। रावत जी दुरसा आढ़ा, पृथ्वीराज राठौड़, बंसरी, जनकवि उस्ताद, महादेव पार्वती री बेलि, दळपत विलास, डिंगळ गीत अर जफरनामो। अै पोथ्यां रावतजी री विद्वता री साख भरै। रावतजी राजस्थानी रै साथै-साथै अंग्रेजी अर हिन्दी रा ही आधिकारिक विद्वान हा। उणां री तीन-चार पोथ्यां अंग्रेजी मांय ही है। जकी मांय सूं '' पोएटस टू वर्डस एंड लिटरेचर'' घणी चावी हुयी।
रावतजी नै उणां री साहित्य सेवा सारू घणा सनमान अर इनाम मिल्या। उणां री एक लाम्बी लिस्ट है। रावतजी भलां ही राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी , बीकानेर , केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली रा मानीजता सदस्य अर परामर्श मण्डल रा चावा थम्ब रैया पण चूरू सदा ही ''घर को जोगी जोगणो .....'' मान्यो।
राजस्थानी री घणी सेवा करता-करता रावतजी राजस्थानी रा एक सबळा सिरजणधरमी बणग्या। उणां री आपरी न्यारी ओळखांण होग्यी। रावतजी रो जबरो नाव हुग्यो।
इस्या नांव रा धणी रावत जी रो सुरगवास 16 दिसम्बर, 1989 ई. हुयो।
लारलै कीं बगत सू बैजनाथजी, सामौरजी अर दुर्गेशजी सूं रावत जी पेटै बंतळ हुयी तो एक बात साफ हुयी कै आज दुनिया मतलब री है। जीवंतै मिनख सूं मतलब हुवै तो उण री घणी गुलामी करै पण उण रै जायां पछै कुण गुलामी करै ? आज तो जमारो इस्यो है कै कोयी घणो खास हुवै अर बीं सूं घणा ही फायदा लियेड़ा हुवै। अर बो जे मरज्या अर बीं रै परिवार मांय लारनै कीं मतलब निगै नीं आवै तो आज रो मिनख बिण रै दाग मांय ही जावणो जरूरी कोनी समझै। सगळा मतलब रा मीत हुवै।

आखर मांय रावत जी सारस्वत नै उणां रै काम पेटै याद करता थकां म्हैं उणां नैं घणो निवण करू कै बै राजस्थानी भासा खातर जबरो काम कर्यो अर राजस्थानी लेखका री एक फौज खड़ी करी।

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