दस्तावेज



राजस्थानी गद्य रो रूप निर्धारण
(विद्वानां री एक विचार गोश्ठी रा निर्णय)

१८-२० मार्च, १९६६ नै जयपुर मंे राजस्थान भाशा प्रचार सभा आधुनिक राजस्थानी गद्य रै सर्वमान्य रूप निर्धारण री समस्या पर विचार करणै अर निर्णय लेवण सारू राजस्थानी रा जाण्या मान्यां विद्वानां री एक गोश्ठी बुलाई।
गद्य री समस्यावां बाबत एक परिपत्र गोश्ठी सूं पैलां राजस्थानी रा प्राय सगळाई लेखकां नै भेज्यो हो अर वां रा विचार अर सुझाव मांग्या हा। कई संस्थावां भी आप रा सुझाव भेज्या हा। गोश्ठी में पधारर विचार करणै अर निर्णय में मदद देवणआळा विद्वानां रा नाम नीचै मुजब है-
१. रेवतदान चारण, कवि
२. हरीन्द्र चौधरी, पत्रकार
३. प्रो. मदनगोपाल भार्मा, कवि
४. डॉ. मनोहर भार्मा, लेखक
५. सीताराम लाळस, कोशकार
६. कोमल कोठारी, आलोचक
७. लाल कवि, कवि
८. श्रीलाल नथमल जो ाी, लेखक
९. परमे वर सोळंकी, पुरातत्वज्ञ
१०. सौभाग्यसिंह भोखावत, भाोध विद्वान
११. प्रो. प्रेमचन्द विजयवर्गीय, व्याख्याता
१२. श्रीलाल मिश्र, आलोचक
१३. उमरावसिंह मंगळ, प्रका ाक
१४. देवीलाल पालीवाल, भाोध विद्वान
१५. सत्यनारायण प्रभाकर, कवि
१६. हणूंतसिंह देवड़ा, कवि
१७. प्रल्हादराय व्यास, लेखक
१८. प्रो. भांभूसिंह मनोहर, भाोध विद्वान
१९. डॉ. हीरालाल माहे वरी, भाोध विद्वान
२०. बुद्धिप्रका ा पारीक, कवि
२१. रामवल्लभ सोमाणी, भाोध विद्वान
२२. नरोत्तमदास स्वामी, भाशा भाास्त्री
२३. मंगळ सक्सेना, अकादमी सचिव
२४. सुमने ा जो ाी, पत्रकार-कवि
२५. चंद्रसिंह, कवि-लेखक
२६. मूळजी व्यास, भाशा-प्रतिनिधि
२७. मूळचंद जौहरी, भाशा प्रतिनिधि
२८. लक्ष्मीकुमारी चूंडावत, लेखिका
२९. मुरलीधर व्यास, लेखक
३०. भांकर पारीक, लेखक
३१. सवाईसिंह धमोरा, लेखक
३२. रेवा ांकर, पत्रकार
३३. डॉ. नरेन्द्र भानावत, लेखक
३४. मूळचंद सेठिया, आलोचक
३५. रामनिवास भााह, आलोचक
३६. हिम्मतलाल हिमकर नेगी, आलोचक
३७. सीताराम पारीक, आलोचक
३८. मनोहर प्रभाकर, कवि
३९. कल्याणसिंह राजावत, कवि
४०. रामकृश्ण बोहरा, पत्रकार
४१. रावत सारस्वत
इणां रे अलावा नीचै लिख्या विद्वान भी समै-समै पर आया अर गोश्ठी में भाग लियो-
१. जनार्दनराय नागर, भूतपूर्व अध्यक्ष, साहित्य अकादमी
२. प्रो. विद्याधर भाास्त्री, संस्कृत विद्वान
३. गिरी ाजी पाण्डेय, हिन्दी लेखक
४. वेदव्यास, राजस्थानी कवि
५. नेमीचंद श्रीमाल, भाोध विद्वान
६. डॉ. सरनामसिंह भार्मा, रीडर, राजस्थान वि वविद्यालय
७. ओंकारसिंह, आई.ए.एस.
८. कन्हैयालाल
९. कामतागुप्त कमले ा
ऊपर लिख्या विद्वानां रै अलावा आज री गोश्ठी में वि वविद्यालय, आका ावाणी अर दूजा अनेक क्षेत्रां रा लोग काफी बड़ी तादाद में हा।
गोश्ठी रो उद्घाटन साहित्य अकादमी रा अध्यक्ष श्री हरिभाऊ उपाध्याय कर्यो। गोश्ठियां री अध्यक्षता मोटा भाशा भाास्त्री अर राजस्थानी रा सगळां सूं सिरै विद्वान री नरोत्तमदासजी स्वामी करी। गोश्ठियां रो संयोजन नामी पत्रकार अर कवि श्री सुमने ा जो ाी कर्यो। इण मोकै पर राजस्थानी पोथियां री एक प्रदर्सणी भी लगाई गई जिण रो उद्घाटन भी हरिभाऊ कर्यो। श्री सीताराम लाळस, श्री मनोहर भार्मा अर श्री मुरलीधर व्यास गोश्ठियां में विसेस अतिथि रै रूप में सम्मानित कर्या गया।
गोश्ठी रा संयोजक सुमने ा जो ाी आप रै प्रारंभिक भाशण में या बात कैयी कै राजस्थान राजस्थानी भाशी प्रांत है। हिन्दी इण प्रांत री मातृभाशा कोनी। सरकारी आंकड़ां रो हवालो देता हुयां जो ाीजी बतायो कै राजस्थान री ढाई करोड़ री आबादी में सूं खाली ३३ लाख आदमी हिन्दी बोलै जद कै दो करोड़ सूं बेसी लोगां री मातृभाशा राजस्थानी है। जो ाीजी या बात भी बताई कै राजस्थान सदा संू हिन्दी नै राश्ट्रभाशा रै रूप में मानतो अर आदर देतो आयो है, पण इण कारण उण नै हिन्दीभाशी मान लेणो सरासर अन्याय है।
श्री हरिभाऊजी उपाध्याय आप रै भाशण में कैयो कै राजस्थानी एक समर्थ भाशा है अर या बात जरूरी है कै उण नै राजस्थान री मातृभाशा रै रूप में मानता दी जावै। साथै ई या बात भी जरूरी है कै राजस्थानी में जे कोई अपूर्णता रैयी हुवै तो उण नै भी पूरी करी जावै। राजस्थानी गद्य रै रूप निर्धारण सारू भेळा हुयोड़ा विद्वानां नै लक्ष्य करता उपाध्यायजी कैयो कै वै आपरा विचारां रै आदान-प्रदान सूं राजस्थानी नै समर्थ बणासी, यो विसवास कर्यो जा सकै। प्राचीन भाोध अर संग्रह री जरूरत मानतां हुयां वै या बात कैयी कै प्रचार-प्रकासण वां रो ई हुवणो चाईजै जिकी जमानै रै गैल लोक-सुहाती लागै अर समाज नै आगै बढ़ावै।
गोश्ठी रा अध्यक्ष श्री नरोत्तमदासजी स्वामी इण बात पर दुख प्रगट कर्यो कै राजस्थानी नै संविधान में मान्यता कोनी मिली। एक रहस्य री बात बतातां हुयां श्री स्वामीजी या बात कैयी कै उण बखत श्री कन्हैयालाल माणकलाल मुं ाी इण काम में अगवा हा अर वै राजस्थान अर गुजरात नै एक करर राजस्थान पर गुजराती थोपणै रा सुपना देखता हा, जिकै सूं राजस्थानी री पुकार सुणी कोनी गई। राजस्थानी री आज री हालत री तुलना सौ बरसां पैलां री हिन्दी सूं करतां बगत स्वामीजी कैयो कै आज री राजस्थानी उण बगत री हिन्दी सूं कित्ती ई जादा समर्थ अर प्राणवान है। लोगां नै प्रेरणा देतां हुयां स्वामीजी राजस्थानी खातर कमर कसणै, जतन करणै अर एकजुट हुयर निर्णय लेवण अर बांनै काम में ढाळणै री जरूरत पर जोर दियो।
राजस्थानी में लगातार साहित्य निर्माण री बात पर बळ देता वे कैयो कै हिन्दी म्हारी राश्ट्रभाशा है, पण इण रो यो मतलब कोनी कै राजस्थानी म्हारी मातृभाशा कोनी। हिन्दी नै जे दूजी प्रांतीय भाशावां सूं कोई खतरो कोनी तो फेर राजस्थानी सूं खतरो कियां हो सकै।
आज री बैठक में प्रो. मदनगोपाल भार्मा 'राजस्थानी गद्य री एकरूपता` पर आप रो निबंध पढ़्यो।
दिनांक १९ अर २० मार्च नै नीचै मुजब निबंध पढ़्या गया-
१. हिन्दी साहित्य रै संदर्भ में राजस्थानी साहित्य री देण अर विसेसतावां - डा. हीरालाल माहे वरी
२. राजस्थानी गद्य री एकरूपता अर आधुनिक राजस्थानी काव्य भाशा - डा. हीरालाल माहे वरी
३. हिन्दी रै वर्तमान स्वरूप मंे न्यारै राजस्थानी रै गद्य रो औचित्य - डा. नेमीचंद श्रीमाळ
४. हिन्दी अर राजस्थानी - डा. सरनामसिंह भार्मा
५. ि ालालेखां में प्रयुक्त राजस्थानी भाशा - आचार्य परमे वर सोळंकी
६. मातृभाशा अर अभिव्यक्ति रो माध्यम - मनोहर प्रभाकर
लक्ष्मीकुमारी चूंडावत अर हणंूतसिंह देवड़ा भी लिखित रूप में आपरा विचार पढ़र सुणाया।
विद्याधरजी भाास्त्री या बात कैयी कै प्रांत री सभ्यता रै विकास खातर प्रांत री एक भाशा होणी जरूरी है। इसी भाशा रो स्वरूप स्थायी अर उण री सब्दावळी निि चत रेणी चाईजै।
स्वामीजी बोल्या कै यो राजस्थानी रो संक्रांतिकाल है। इसै बगत मंे कठणाई हुवै ई हैै। पण अठै लियोड़ा निर्णयां नै काम में लेर आपां नै आगै बढ़णो चाईजै। आपां रो हिन्दी सूं कोई विरोध कोनी, पण मातृभाशा राजस्थानी सारू भी आपणो घणो मोटो फरज है।
जनार्दनराय नागर कैयो कै म्हे लोग राजस्थानी नै राजस्थान री मातृभाशा मानां अर हिन्दी नै राश्ट्रभाशा। जिका लोग या बात कैवे के राजस्थानी री बढ़ोतरी सूं हिन्दी री हाण हुवै, बै बेईमान है। इण प्रसंग में नागरजी अर दूजा विद्वानां दो प्रस्ताव त्यार कर्या जिका नीचै मुजब हा। अ प्र्रस्ताव गोश्ठी में घणै हरख-उछाह सूं मान्या गया।

प्रस्ताव-१
राजस्थानी भाशा अर साहित्य रै इण उपनिशद् रै मोकै पर भेळा हुयोड़ा राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो पक्को मत है कै राजस्थान प्रदे ा री स्वाभाविक मातृभाशा राजस्थानी है। भारतीय भाशावां रै ऐतिहासिक काळक्रम अर भारतीय भाशा विज्ञान रै सिद्ध निश्कर्शां रै आधार पर राजस्थान प्रदे ा मातृभाशा री द्रिश्टि सूं हिन्दी भाशी क्षेत्र कोनी। राजस्थानी भाशा अर साहित्य में जण-जीवण रै व्यवहार री धारावाही परंपरा अपभ्रं ा काळ सूं ई अविछिन्न रूप सूं चालती आई है। इण वास्तै उपनिशद् रै मोकै पर भेळा हुयोड़ा राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो फैसलो है कै राजस्थान री दो-ढ़ाई करोड़ लोगां री स्वाभाविक मातृभाशा नै प्रदे ा अर राश्ट्र रै स्तर पर पक्कायत मानता मिलणी चाईजै। इण वास्तै यो निर्णय कर्यो जावै है कै राजस्थानी री बोलियां रो उदारता सूं विकास करता हुयां राजस्थानी भाशा रै रूप रो विकास कर्यो जावै अर राजस्थानी भाशा री मानता री समस्या नै सारै राजस्थान में चेतना पैदा करता हुयां सुळझाई जावै।
प्रस्तावक - जनार्दनराय नागर
समर्थक - सुमने ा जो ाी

प्रस्ताव-२
राजस्थानी भाशा अर साहित्य रो यो उपनिशद् राजस्थान साहित्य अकादमी सूं अरज करै है कै राजस्थानी भाशा री एकरूपता रै विकास खातर अकादमी एक ऊंचै दरजै रै विकास आयोग री थापना करै। यो आयोग राजस्थानी भाशा री इतिहासी, भाशा संबंधी, साहित्य संबंधी अर समाज संबंधी - सगळी बातां नै भली भांत देखर राजस्थान प्रदे ा री अधिकृत भाशा रै रूप में राजस्थानी री प्रगति संभव हो सकै, इण काम सारू सारा विवरण भेळा करै अर इसा रचनात्मक अर सृजनात्मक आधार सामै राखै जिणां सूं राजस्थानी बोलियां रो आपसी मेळजोळ भली भामत बैठ सकै।
प्रस्तावक - परमे वर सोळंकी
समर्थक - श्रीलाल मिश्र

१९ तारीख री गोश्ठी रो मूळ निर्णय यो रैयौ कै राजस्थानी राजस्थान री मातृभाशा है अर राश्ट्रभाशा हिन्दी सूं इण रो कोई विरोध कोनी। इण वास्तै राजस्थानी री मानता सारू सगळा लोगां नै एकठा होर जोर लगाणो चाईजै।
इण चर्चा रै बाद उपनिशद् रै मूळ विसय - गद्य री एकरूपता - पर चर्चा सरू करी गई। इण चर्चा रो संयोजन रावत सारस्वत कर्यो। चर्चावां रा निर्णय इण कारवाई रै साथै ईज छाप्या हैं।

गोश्ठी में गद्य री एकरूपता रा लिया गया कुछेक निर्णय

लिपि-
१. ए-ऐ री जगा अे-अै लिखणा। उ-ऊ री जगां अु-अू। हो सकै तो बारखड़ी री सगळी मात्रावां अ रै ही लगाई जावै, जियां- आि-आी।
२. मूर्धन्य ल नै ळ लिख्यो जावै।
३. चन्द्र बिन्दु अर बिन्दु दोनां री जगां ० लगायो जावै।
४. व अर्धस्वर रो प्रयोग नईं कर्यो जावै।
५. सानुनासिक ध्वनियां रै पैलड़ा आखरां पर बिंदी नीं लगाई जावै, जियां रांम, राजस्थांन नी लिखर, राम, राजस्थान ई लिख्यो जावै।
६. औ री जगां ओ लिख्यौ जावै, जियां- गयौ, घोड़ौ, सीधौ, औखद, मौड़ौ री जगां गयो, घोड़ो, सीधो, ओखद, मोड़ो लिखणो चाईजै।
७. अनुप्राणित उच्चारण रा सब्दां में बळ प्रयोग रो निसान नी लगायो जावै, जियां सारो- सा रो- दोनां नै सारो ई लिखणो। प्रसंग सूं अरथ साफ हो जासी।
८. जिका तत्सम सब्द देसी रूप में नी ढळ्या है, वां नै सुद्ध रूप में ई लिखणा, जियंा श्रम, विि ाश्ट, समाविश्ट आदि। इसा सब्दां नै फालतू तोड़णै री चेश्टा नी करणी, जियां सरम, समाविसट आदि। पण जिकां रा देसी रूप ढळग्य है, वां नै देसी रूप में ई लिखणा, जियां आ चर्य री जगां अचरच, द र्ान री जगां दरसण, कृश्ण री जगां क्रिसण आदि।
९. कृ री जगां क्रि रो प्रयोग करणो। इयां ई दूजी जगावां में भी करणो।
१०. आधा सानुनासिक सब्दां नै बिन्दी सूं दरसाणा, जियां कण्ठ, पन्त, कम्प नै कंठ, पंत अर कंप लिखणो।
उच्चारण री कुछेक दूजी समस्यावां-
हिन्दी - में
राजस्थानी - में, मांय-घर में कुण। घर मांय संू आयो।
हिन्दी - तू, तुमको (आपको)
राजस्थानी - तूं, तनै, थांनै, आपनै -थांनै आवणो है।
(थारी अर थांरी में थारी नीचै दरजै अर थांरी ऊंचै दरजै रो सब्द है।)
हिन्दी - सिंह, क्या
राजस्थानी - सिंघ, काईं - सिंघ म्हारो काईं करै।
हिन्दी - कन्हैया, ही
राजस्थानी - कनइयो, ई - कनइयो ई चोखो लागै।
हिन्दी - उठाकर
राजस्थानी - उठार। पोथी उठार पढ़ण लागग्यो।
हिन्दी - तरह, कि, नहीं
राजस्थानी - तरै, क, कै, नईं (नीं) - चोखी तरै जावै क नईं कैयो कै जावूं।
हिन्दी - थोड़ा सा रुपया मुझे चाहिये
राजस्थानी - थोड़ा सा (थोड़ासाक) - रुपिया मनै चाईजै।
हिन्दी - आई, आया, जाने वाला
राजस्थानी - आई, आया, जावणवाळा (जावणआळा)। आया जिका जावणाळा है।
सब्द-भेद
(वचन) छोरी, पोथी - छोर्यां, पोथ्यां। छोर्यां पोथ्यां पढ़ै।
विभक्ति -
राजा रा घोड़ा पर, किला रा माथा पर, रावळा में नी लिखर राजा रै घोड़ै पर, किलै रै माथै पर, रावळै में लिखणो। हिन्दी 'अरै` री जगां 'अरै` लिखणो।
सर्वनाम -
हिन्दी - मैं, मैंने, मेरे से, मेरा, मेरे में
राजस्थानी - हूं, म्हैं, म्हारै सूं, म्हांसू, म्हारो, म्हां में, म्हारै में
हिन्दी - तू, तुझे, तेरे से, तूने, तुझमें
राजस्थानी - तूं, तनै, थानै, तैसूं, थारै सूं, तैंमैं, थारे में
हिन्दी - आपका, आपमें, आपको
राजस्थानी - आपरो (थांरो), आप में (थां में), आप नै (थांनै)
हिन्दी - यह, ये, इस, इसने, इसको, उस, उसने, इनमें, इन्होंने
राजस्थानी - ओ (आ), अै, ई (इण), इण नै, उण (बीं), इणां में, इणां
हिन्दी - कौन, किसको, कई, जो, जिस, उस
राजस्थानी - कुण, किणनै, कई (केई), जो, जिको, जिण, तिण
क्रियाविसेसण -
हिन्दी - यहां, वहां, जहां, कहां, तहां, इधर, उधर, जिधर
राजस्थानी - अठै-बठै कांई धर्यो है? जठै-कठै मिलसी। अठी नै बैठ, बठी नै काईं मेल्यो है। जठी नै जासी, बठी नै मिलसी।
हिन्दी - अब, कब, जब, किस समय, जिस समय, अभी
राजस्थानी - अबार मत जा, अबै काईं पड़्यो है। कद अर कणै जासी? जद अर जणै ई आसूं। हणै ई काईं करूं।
हिन्दी - आगे, पीछे, बाद में, सामने, बाहर, परसों, फिर, परले दिन
राजस्थानी - आगै (अगाड़ी), पछै, सामनै, बारै, परसूं, फेर, परलै दिन, तापरलै दिन
हिन्दी - ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे, तैसे, ज्यों-त्यों
राजस्थानी - आिंयां, बिंया, किंया, जिंया, तिंया, ज्यूं-त्यूं
क्रिया-
हिन्दी - आना, जाना, कहना, आता
राजस्थानी - आवणो, जावणो, कैवणो, आवतो
हिन्दी - करना (आज्ञा), रहूंगा, जाऊंगा, होगा, हुआ, था, थी
राजस्थानी - करजो, रहसूं (रहूंला), जासूं (जाऊंला), हुसी, हुयो, हो, ही
हिन्दी - रहा, रहता हूं, किया, है
राजस्थानी - रैयो, रैवूं हूं, कर्यो, है
वि ोशण -
हिन्दी - अधिक, ज्यादा, बहुत सब
राजस्थानी - अधिक, जादा, बौत, सै (सगळा)
हिन्दी - ऐसा, वैसा, कैसा, जैसा, जितना, उतना
राजस्थानी - आिसो, बिसो, किसो, जिसो, जित्ता, बित्ता
संयोजक -
हिन्दी - और, या, पर
राजस्थानी - अर, और नै, या, पण
विविध -
हिन्दी - दे दो, ले लो, मोहर, कहानी , महल
राजस्थानी -दे दो, ले लो, मो`र, का`णी, मै`ल (बळ प्रयोग इसा सब्दां में फिलहाल लगाणो ई तै राख्यो)
हिन्दी - क्या जाने, दूहना, चाय, पत्थर, सूखा
राजस्थानी - काईं ठा, दूवणो, चाय, पत्थर, सूका
कई सब्द गळत लिख्या जावै जिणां नै नीचै मुजब सही लिखणा -
गळत सब्द कौठे मांड्या है - कनै (खनै), आधो (आगो), खाथो (खातो), ऊंतावळ (उंतावळ), चोखो (छोको-चोको), माझळ (मांझळ), पीथल (पीथळ), पातल (पातळ), बगत (बख्त), किनारो (कनारो), निजर (नजर), आणंद (आनंद), नवी (नई), पड़नो (पड़णो), जचै (जंचै), नदी (नंदी), नदी (नद्दी), सारू (सारूं), आवतो (आंवतो), कीं (कुछ), सवाल (सुवाल), काल (कालै), मसखरी (मसकरी), सूंघै (सूंगै), साच (सांच), बो - बा (वो - वा), सूं (स्यूं), बिरछ (वरछ), भाजै (भागै), अुमर (अूमर), पकड़ (कपड़, अपड़), मस्त (मसत), रैया (रिया), मणिया (मिणिया),
ऊपर लिख्या प्रयोगां रो सैद्धांतिक विवेचन कर्यो गयो अर कुछेक निर्णय लिया गया। और भी अनेक इसी समस्यावां हैं, जिणां पर विचार कियो जाणो जरूरी मालुम पड़ै। पण जे राजस्थानी लेखक इण निर्णयां नै आपरी रचनावां में उतारणै री कोसिस करसी तो आगै री एकरूपता रा प्रयत्नां नै बळ मिलसी।


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