आज रा कहाणीकार : प्रकाशकीय



साहित्यिक कहाणी अर लोककथा में जिको मूळ फरक है उण नैं राजस्थान रा जूना कहाणीकार भी घणी पहलां ओळख लियो हो। यूं तो सब भांत री कहाणियां बातां रै नांव सूं सैंकड़ां री तादाद में मांडी मिलै, पण साहित्यिक कहाणी रा तत्वां नैं समेटती कहाणियां भी घणी है। छोटा-छोटा वाक्य, क्रियावां रो प्राय: अभाव, अलंकारां सूं जड़ी सब्दावळी अर मुहावरां सूं जीवंत लखाती भासा वरणनां री सजीवता रै माथै भावां री अूंडाई में भी गोता लगाती मिलै। व्यंजना-सगती री ठाडी सामरथ वाळी कई छोटी-छोटी बातां तो आज रै बढ़्यै-चढ़्यै साहित्य में भी कमती मिलै। 'वींझरै अहीर री बात` इण रो नमूनो है। जिण में एक गांव री गोरी आपरै प्रेमी सूं अभिसार करण जावै अर भोळप में उण रै मुंह सूं 'बीरा` सब्द निकळ जावै जिण सूं सगळी मनसावां नै मारती थकी वा पाछी आ जावै। एक-दो पानां री वा छोटी बात साहित्यिक मरम में बड़ी-बड़ी बातां नैं मात करै इसी है।
जद देस री दूजी भासावां में इत्तै ऊंचै दरजै री बातां कम लिखी जाती ही, उण बखत राजस्थानी में इसी बातां मांडी जाती ही। गुन्नीसवैं सईकै रै खतम होतां-होतां अंग्रेजी अर हिंदी रै प्रवेस रै साथै राजस्थानी री साहित्यिक रचनावां हीण ओस्था में पूगण लागणी ही। पाछला डेढ़सौ बरसां री आ हीण दसा राजस्थानी रै भासा रूप नैं खतम करण रो काम कर्यो। ओ ई कारण है कै आज री राजस्थानी कहाणी नैं, दूजी विधावां रै साहित्य रै ज्यंू, आपरी जूनी लीक सूं छेड़ै नयो मारग मांडणो पड़्यो। ओ मारग राजस्थान री धरती री पिछाण राखणियां पगां सूं नीं मांडीज्यो, पण ओपरा पगां री ओपरी चालां संू बण्यो।
मिनख रो सुभाव है कै वो नकल करण रो काम जाण-अणजाण में झट सरू कर देवै। मिनख रा सगळा संस्कार, व्योहार अर रहण-सहण, खाण-पीण आद री सगळी आदतां नकल सूं ही बणै। भासा री तो जड़ ई नकल में है। बहोत थोड़ा लोग इसा हुवै जिका इण नकल सूं दूर रह`र नई बात सोचै, नयै ढंग सूं नया काम करै। वै औसत मिनखां सूं न्यारा-निरवाळा मानीजै। इण मूळ विरती नैं देखतां जे दूजी भासा अर साहित्य री नकल पर रचनावां हुवै तो काई अपरोघ्ज्ञी बात कोनी। आज री राजस्थानी रचनावां रो, खासकर हिन्दी अर थोड़ी-थोड़ी दूजी भासावां री नकल पर, लिखीजणो भी कोई नई बात नीं होणी चाईजै।
परंपरा सूं बिछड़्योड़ै आज रै राजस्थानी साहित्य री जड़ां कोई गहरी कोनी। हिन्दी भासा रै पढ़णै-पढ़ाणै री छाप राजस्थानी रचनावां मे चोड़ै दीखै। छड़्या-बीछड़्या इसा लेखक भी है जिका अंग्रेजी री रचनावां सूं प्रेरणा ले। जे और भी कोई भासा राजस्थानी पर असर गेर्यो है तो वै जरूर हिन्दी अर अंग्रेजी अनुवादां रै जरियै, क्यूंकै बहोत थोड़ा इसा लेखक हुसी जिणां नैं आं दोवां टाळ कोई तीजी भासा रो मुहावरो अर रफ्त हुवै।
असर ग्रहण करतां हुयां भी कई समरथ लेखक इसा है जिकां रा पग आपरी धरती पर टिक्या है। वां री कहाणी में आपणी धरती, आपणै बायरै अर आपणै आभै री सोरम है। वां रा पात्र आपणै समाज रा जीता-जागता मिनख है अर वां री समस्यावां आपणी आंख्यां देखी बातां है। बैजनाथ पंवार, नरसिंघ राजपुरोहित, रामे वरदयाल श्रीमाळी, अन्नाराम सुदामा, नंद भारद्वाज आद इसा ई समरथ लिखारा है जका राजस्थान री धरती रो दरद आपरी बातां में समेट्यो है।
अठै आ बात भुलाणै री नीं है कै धरती री रंगत होतां थकां भी कहाणी मांडण रो ढंग सफा ओपरो है। उण में आपणी परंपरा रो अभाव तो है ई पण आपरी निरवाळी सैली कैवावण री खिमता भी कोनी। ठेठ राजस्थानी ठाठ में बात कैवण रो जिको ढंग है, वो ज्यूं रो त्यूं तो विचारप्रधान वातां मंे नीं उतार्यो जा सकै, पण फेर भी उण री मूळ बणगट, उण रा छोटा-छोटा वाक्यां रा टुकड़ा, फालतू रा सब्दां नैं टाळणो, सार कथण री चतराई आद कई इसा गुण है जिकां नैं ग्रहण किया जा सकै। पण आज रा लिखारां में कोई जौ-बिरळो ई पुराणी बातां नैं पढ़ी होसी, पढ़`र पचाणो तो दूर री बात है।
हिन्दी में रोमांसप्रधान सीधीसाद कहाणियां रो जुग घणो पहलां चल्यो गयो हो। आज बिसी कहाणियां हळकी-फुळकी पत्रिकावां में भले ई मिलो। पण राजस्थानी में हाल लड़कै-लड़की रै प्रेम री उथळी कहाणियां मांडी जावै। इण संग्रै मंे 'खिरग्या पान`, 'अणबूझ प्हाळी`, 'आन`, 'सामली बारी` आद कहाणियां इणी ढंग री कैयी जा सकै। यूं मालूम पड़ै कै पात्रां नैं पैलां सूं ई प्रेम में भिजो`र मेल्या है। लुगाई-मोट्यार रो समर्पण कित्ती मुसकलां सूं हुवै अर इण मारग मंे कित्ती आफतां सूं निपटण सारू कित्ती साधना री जरूरत है, आ मूळ बात लिखारां रै दिमाग में कोनी आई। सस्तो प्यार टिकाऊ कोनी अर उण री कोई वकत भी कोनी।
गद्यकाव्यात्मक सैली में कहाणियां मांडण रो रिवाज भी बीत्यै जुग री बात होगी। आज रै बुद्धिप्रधान जमानै में कोरी भावना री बात मांड`र रिझाणै री कोसीस बेकार सी लखावै। भले ई थोड़ा भावुक सुभाव रा लोगां नैं इसी बात रुचै पण वां रो ताणो-बाणो मनां में उठती-गिरती विचार तरंगां सूं कमती लगाव राखै। इण संग्रै में 'सुपनो`, 'आल जंजाळ`, 'डाळ सूं छूट्या पंछी`, 'दीया जळै दीया बुझै` आद कहाणियां कम-बेसी भावना प्रधान है। दामोदरप्रसाद अर सोभागसिंघ री बातां भी रजपूती आन-बान री भावनात्मक बात सैली री रचनावां है। 'आळ जंजाळ` में ब्रजमोहन जावळिया पन्ना धाय रै मनोवेगां नैं दरसाणै री चेश्टा करी है पण गद्य री पद्यात्मक सैली उण में बाधा देती दीखै।
निरी भावनाप्रधान होणै पर भी किसोर कल्पनाकांत री 'गीतां रो बावळियो` एक बेजोड़ रचना कैयी जाणी चाईजै। उण में जिकी समरसता, एकतानता अर मूळ तत्त्व रो निर्वाह ठेठ ताणी खूबी सूं कर्यो है वा बिरळी ई मिलै। एक कवि रै जीवण रो प्रसंग हुवण सूं कहाणी अणहोणी भी कोनी दीखै। भासा रो प्रयोग भी विसय सूं मेळ खातो है। यूं, या कहाणी सांगोपांग रूप सूं सफल कहाणी है।
नई कविता री देखादेखी कई लिखारा नई कहाणी भी लिखणै री चेस्टा करी है। इणां में चमत्कार दिखावण री मनस्या अूंडी बैठी लखावै। कहाणी रा मूळ तत्त्व ई गायब है। सगळी बात एक चुटकलो सी, बसेी करो तो एक सूक्ति सी या एक भागतै चितराम सी मालूम पड़ै। 'कि अर की`, इसो ई प्रयास है। रचना सैली रो नयोपणो जद ई मन नैं रुचै जद कैयी गई बात में दम हुवै।
कई लिखारा थरप्योड़ा मोलां अर जूनां संस्कारां री खिलाफत में ई सार समझै। यूं करणो वै जस कमावण रो सरळ मारग मानै। यादवेन्द्र की कहाणी 'बाप अर बेटो` में एक ई लड़की सूं बाप अर बेटो प्रेम करै। इसी घटणावां कित्ती हुवै, किसै समाज में हुवै अर यां रो कांईं असर पड़ै- अै सगळी बाता लिखारै नैं सोचणी चाईजै।
एक और रचना-सिल्प है लोककथा रो। उण री सुखांत भावना पैलां सूं ई पाठक नैं मन री उण हालत में मेल देवै अर कठै ई विचारां नैं तकलीफ कोनी करणी पड़ै। उस्ताद गणेसीलाल री 'डोकरी री का`णी` मूळ रूप में लोककथा है। उस्ताद में ऊंची उडाण री चीजां लिखणै री भी खिमता ही, पण वै जिंदगी सूं जूझणै में लाग्या रैया अर कहाणी वांनै पकड़ नीं सकी।
भासा रा समरथ कई लिखारा है जिका थोड़ी खेचळ करै, संसार रै कथा साहित्य नैं पढ़ै-गुणै तो वै साच्याणी अूंचै दरजै री कहाणियां लिख सकै।
एक बड़ी बात आ है कै लिखारा वा ई बात लिखै तो ठीक जिकी नैं वै खुद भुगती है या जिण रै बीच वै दिनरात बिताई है। इण भांत राजस्थानी रा लिखारा, जिका घणखरा मध्यवित्त परिवारां रा है, आप री आपबीती सी लिखै तो ज्यादा सफळ हुवै। चला`र कोई विसय अर वातावरण नैं ओढ़णै री चेस्टा सूं न्याय नीं कर्यो जा सकै। ओ ई कारण है कै जिका लिखारा ठेठ गांवां रा रैवासी है, वै ई गांव री कहाणियां चोखी मांड पाया है। डॉ. मनोहर भार्मा खुद मध्यवित्त परिवार रा है। वै जिकी कहाणी 'करड़ी आंच` मांडी है उण रो मरम वो ई समझ सकै जिको सेखावाटी रै उण समाज में रैयो है जिण में बाणियां रो प्रभुत्व है अर बाकी घणखरा वां री क्रिया या वांरै सहारै पर जीवणियां है, खास तौर सूं बामणां रा परिवार। 'करड़ी आंच` रो वातावरण लिखारै रै जीवण में रम्योड़ो है अर इण सूं ई गहरो असर करै।
आज लूंठा सहारां रा होटलां री, गुंडा-बदमासां-डाकुवां री या और भी इणी भांत रा विसयां री कहाणियां मांंडणियां लिखारा उण जिंदगी नैं नीं तो खुद जीयी है अर नीं उण नैं नैड़ै सूं देखी है। इसी कहाणियां लिखणै री बजाय वै आप री भुगती या देखी-पिछाणी जिंदगी नैं मांडै तो सायद बेसी ठीक रैवै।
राजस्थानी कहाणियां रो ओ लेखो-जोखो मौटै रूप मे तो सही ई है, हां, बारीक छाणबीण सूं इसा तत्त्व निकाळ्या जा सकै जिका सूं आज री कहाणियां रो सही मोल-तोल कर्यो जा सकै।
इण संग्रै बाबत दो आंक मांडतां आ बात भी समझाणी ही कै रचनावां बखत-बखत पर छपी है जिण सूं कागज, छपाई अर ढंग-डोळ में फरक है। भाई श्रीमाळीजी कहाणियां बाबत आपरा विचार विस्तार सूं मांड`र म्हारो भार हळको कर दियो जण सूं थोड़ा साई विचार आपरै सामैं राख्या है। संग्रै रै दूजै भाग में सेस लिखारां री रचनावां छापणी है। कई नामी लिखारां री रचनावां भी इण में कारणवस भेळी नीं करी जा सकी। दूजै भाग में ई समूचै कहाणी साहित्य पर विस्तार सूं चरचार करी जासी।
(रावत सारस्वत, जयपुर, आखातीज-२०३३)

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