अंक पहलो
द्रिस्य पहलो
द्रिस्य पहलो
बंसरी - छितीस, साहित में थानै 'नई फैसन रो धूमकेतू` कयो जा सकै। साहित रै आकास में थे बळती पूंछ रै झपेटां सूं जूना कायदा झाड़ता जा रया हो। आज जठै थानै लाई हूं बठै बिलायती बंगाली घणा है। ओ फैसनेबलां रो बास है। अठै रा रस्ता अर गळी-कूचा थारा जाण्योड़ा नीं है। इण सूं ही थोड़ी पैली ले आई। इतै कठै थोड़ी आड़ में बैठ्या रहो। सगळा आ जावै जद थारी महिमा चोड़ै करियो। अब मैं जाऊं, हो सकै न भी आऊं।
छितीस - थोड़ा ठहरो, समझाती तो जावो, इसी जगां, मनैं क्यूं ले आया थे?
बंसरी - तो साफ-साफ कहद्यूं। थे बजार में नाम कर्यो है पोथियां लिख`र। मैं और भी आस करी ही। मैं सोची ही`क थे थारै नांव नै बजार सूं इत्तो ऊंचो उठा देस्यो`क निचला लोग थानैं गाळ काढ़णी सरू कर देसी। छितीस - म्हारो नांव बजार मं चालू घस्योड़ो पीसो कोनी - आ बात थे कोनी मानो कांईं?
बंसरी - साहित रै सद बजार री बात नीं हो री है। थे लोग जिके नये बजार रै चालू भाव में व्योपार चलावो हो वो भी तो एक बजार है। उण रै बारै निकळणै री थारै में हिम्मत कोनी- डर लागै जाणै कठै माल री सान नीं मारी जावै। अबकै थारी 'बेमेळ` नांव री नई पोथी में इण बात रो ही सबूत मिल्यो है। पढ़णहाळा नै सस्तै में ही भुळावण री लोभ थारै में घणो है। निचलै दरजै रा लेखक इण लोभ में ही मार्या जावै। थारी इण पोथी नैं मैं तो आज रो नयो 'तोता-मैना` ही कहस्यूं। घटिया आधुनिकता रै सिवा उण में और क्यूं भी तो नीं। छितीस - थोड़ी झाळ आगी दीखै? असल में थां लोगां री फैसनेबल पोसाक में बरछो गड़ग्यो।
बंसरी - हूं: उण नैं बरछो कैवो! बो तो रामलीला हाळां रो गत्तै रो बरछो है जिकै रै रांगो पोत्योड़ो है। उण सूं भुळै जिका उल्लू है। छितीस - चोखो, मानग्या पण मनैं अठै क्यूं ले आया?
बंसरी - थे टेबलां बजा-बजा`र बजाणै रो अभ्यास करो हो, जठै साचला बाजा मिलै है बठै थानैं सिखाण नैं ल्याई हूं। इण लोगां सूं थे अळगा रैवो हो, ईर्स्या करो अर बणा-बणा`र गाळ्यां काढ़ो हो। थारी पोथी में नालिनाक्ष रै नांव सूं जिको दळ रच कर थे मारी हांसी उडवाई है, उण दळ री लोगां नैं थे साचाणी जाणो भी हो काईं?
छितीस - कचेड़ी में गवाही दे सकूं जिसो तो नीं जाणूं पण बणा`र कहणै लायक जरूर जाणूं।
बंसरी - भला आदम्यां, बणा`र कहणै खातर तो कचेड़ी रै गवाह सूं भी घणो बेसी जाणणै री जरूरत है। कालेज में पढ़ता हा जद सीख्यो हो - 'रसात्मक वाक्यं काव्यं- रसपूरण वाक्य ही काव्य है`, इब मोट्यार जवान होग्या हो, फेर भी उण अधूरी बात नैं पूरी करकै नीं समझ सक्या, के - 'साचा वाक्य ही जद रसपूरण होवै तो साहित कहीजै।`
छितीस - टाबरां री सी रुची खातर रस जुटाणो मेरो धन्धो कोनी। मैं आयो हूं जीरण नै चूर-चूर करै साफ कर देणै खातर।
बंसरी - ओफ्-हो! चोखी बात है, कलम नैं जे बुहारी ही बणाणी चाहो, तो कूड़े रा ढिगला भी साचा होण चाये अर बुहारी भी; अर सागै-सागै बुहारी थामणियां हाथ भी। म्हे ही लोग हां थारै नालिनाक्ष रै दळहारा, म्हारा कसूर मोकळा है, अर थां लोगां रा भी थोड़ा कोनी। मैं कसूर मात्र करणै खातर नीं कह री हूं, चोखी तरियां जाणकारी करणै खातर कह री हूं, साची बात बताणै खातर कह री हूं; फर बा चाहे चोखी लागो भांवै बुरी, - उण सूं क्यूं बणै-बिगड़ै कोनी।बंसरी - थे टेबलां बजा-बजा`र बजाणै रो अभ्यास करो हो, जठै साचला बाजा मिलै है बठै थानैं सिखाण नैं ल्याई हूं। इण लोगां सूं थे अळगा रैवो हो, ईर्स्या करो अर बणा-बणा`र गाळ्यां काढ़ो हो। थारी पोथी में नालिनाक्ष रै नांव सूं जिको दळ रच कर थे मारी हांसी उडवाई है, उण दळ री लोगां नैं थे साचाणी जाणो भी हो काईं?
छितीस - कचेड़ी में गवाही दे सकूं जिसो तो नीं जाणूं पण बणा`र कहणै लायक जरूर जाणूं।
बंसरी - भला आदम्यां, बणा`र कहणै खातर तो कचेड़ी रै गवाह सूं भी घणो बेसी जाणणै री जरूरत है। कालेज में पढ़ता हा जद सीख्यो हो - 'रसात्मक वाक्यं काव्यं- रसपूरण वाक्य ही काव्य है`, इब मोट्यार जवान होग्या हो, फेर भी उण अधूरी बात नैं पूरी करकै नीं समझ सक्या, के - 'साचा वाक्य ही जद रसपूरण होवै तो साहित कहीजै।`
छितीस - टाबरां री सी रुची खातर रस जुटाणो मेरो धन्धो कोनी। मैं आयो हूं जीरण नै चूर-चूर करै साफ कर देणै खातर।
छितीस - कम सूं कम थानैं तो जाण ही ली, बंसरी! किसो`क लागै इण री पिछाण भी सायद कनखियां सूं थोड़ी-थोड़ी मिल जावै।
बंसरी - देखो, साहितकारजी, म्हारै दळ में भी मेळ-बेमेळ रै तोल रो एक कांटो है। चासणी मिला`र बातां नै चिपचिपी कर देणै री रीत अठै कोनी। उण सूं तो घिरणा होवै अर जी मिचळावै। सुणो, छितीस, मैं थानैं फेर एक बार साफ-साफ बता देवंू। छितीस - थारी बातां तो इतणी घणी साफ होवै कै समझ में आवै जिकै सूं बेसी चुभै।
बंसरी - चुभण द्यो, सुणो। अस्वत्थामा री बात पढ़ी होसी ना टाबरां री, भागवान रै टाबर नैं दूध पीतां देख जद वो रोणो सुरू कर्यो तो उण नैं पिस्योड़ा चावळां रो धोवण पिवा दियो हो, अर पीतां ही वो दूध पीणै रै मोद में दोनूं हाथ ऊंचा कर`र नाचै लागो हो।छितीस - समझग्यो। अब जादा कहणै री जरूरत कोनी। मतलब यो के मैं म्हारी रचनावां मंे पढ़णहाळां नैं टाबरां री ज्यूं 'चावळां रो धोवण` पिवा`र नचा र्यो हूं।
बंसरी - थारी रचनावां बणावटी है, पोथ्यां पढ़-पढ़`र लिख्योड़ी। जिका आप रै जीवण मंे 'साच` नैं पिछाण्यो है उणां नैं थारी रचनावां मंे कोई स्वाद को आवै नीं।
छितीस - थे पिछाण्यो है 'साच` नैं?
बंसरी - हां, पिछाण्यो है। पण दुख तो यो है के लिखणो कोनी आवै। अर उण सूं बड़ो दुख भी है कै थानैं लिखणो आवै पण 'सच` नैं थे जाबक ही नीं पिछाण पाया। मैं आ चाहूं के थे भी मेरी तरियां खुलासा जाणणो सीखो, अर साचो लिखणो सीखो। फेर देखो! यूं मालूम देसी जाणै थारा प्राण अर मन थारी कलम में मूंडै बोलण लागग्या होवै। छितीस - जागणै री बात तो थे कह दी, पण या बताओ के जागणै रो तरीको कांई है?
बंसरी - तरीको सीखणो आज री इण पारटी सूं ही सरू कर द्यो। अठै री इण दुनियां सूं थे इतणा दूर हो के जठै बैठ कर निरलिप्त होकर सो क्यूं देख्यो जा सकै। छितीस - अच्छा, थे इण पारटी री बात तो थोड़ी समझाद्यो, सूक्षम में।
बंसरी - तो सुणो, एक कानी तो इण घर री लड़की है जिकी रो नांव है सुसमा। सारा मरदां रो मत है के सुसमा रै लायक जोड़ी संसार में कोई नीं, खुद उण रै टाळ। ऊधमी जवानां में कदे-कदे इसी बायां चढ़ाण रो ढंग देखणै में आवै के जे कानून री कचेड़ियां न होती तो बै खून-खराबी कर गेरता। दूजै कानी है संभूगढ़ रो राजा सोमसंकर। लुगायां उण रै बारै में कांई-कांई कानाफूंसी करै आ तो मैं कोनी बताऊं क्यूं के मैं खुद भी लुगाई री जात ठहरी। आज री पारटी है इणां दोनुवां री सगाई री।छितीस - दो मिनखां रा ठिकाणा तो मिल्या। दो री गिणती तो गुड़ती-गुड़ती पूंच जावै सुख-सांति री गिरस्थी में। तीन रो नांव है 'नारद` जिणरो काम है उळझाणो। उळझातो-उळझातो आखर इसो उळझा देवै के जीवण दुख देऊ नाटक बण जावै। इण में तीजो मिनख भी जरूर ही कठै हुवैलो नहीं तो साहित्यिक रै खातर लोभ री चीज ही कांई रह जावै?
बंसरी - तीजो मिनख भी है! अर हो सकै के वो ही खास-मिनख हो। लोग उण नैं पुरंदर संन्यासी कैवे। मां-बाप उण रो कांई नाम राख्यो हो इण बात रो किण नैं ही ठा नहीं। कोई तो उण नैं देख्यो है कुम्भ रै मेळै में, अर कोई देख्यो है गारो रै डूंगरा में भालू रो सिकार करतां। कोई कैवे के वो यूरोप में घणां दिन हो। सुसमा नैं वो आपरी मनस्यां सूं कालेज में पढ़ाई है। आखर मे हो गयो ओ संबंध। सुसमा री मां कैवे, 'ब्रह्म समाज में किणी सूं संबंध होणो चाहिजे` पण सुसमा जिद पकड़ बैठी - 'पुरंदर रै टाळ और किणी सूं नहीं हो सकै।` चारूंमेर री हवा री बात जे पूछो तो मैं केस्यूं के कठैई दबाव जरूर पड़्यो है। कुछ आंधी जिसी बात है, बादळ कठै न कठै अणहूंता बरस्या है। बस ओर नहीं।
छितीस - अरै देखो तो सही म्हारी अरंडी में ओ स्याही रो दाग कठै सं लाग गयो।
बंसरी - इसी उतावळ क्यूं करो हो! स्याही रै इण दाग में ही तो थारी खासियत है। थे वास्तव-वादी हो। निर्मळता थानैं सोभा नहीं देवै। थे तो मसीध्वज हो। बै देखो अनसूया अर प्रियंबदा इनैं ही आवै। छितीस - इण रो मतलब?
बंसरी - दोनूं सखियां है। एक-दूजै सूं कदे ही न्यारी नहीं हुवै। सखीपणै री उपाधि रै इम्तिहान में इणां नै अै नांव मिल्या है। असली नांवां नैं तो लोग भूल ही गया। (दोनूं चल्या जावै)
(दोनूं सखियां आवे)
पहली सखी - आज सुसमा री सगाई है, सोचूं तो कियां ही लागै।
दूजी सखी - सगाई सूं सगळी छोरियां रो मन खराब हो ज्यावै।
पहली सखी - क्यूं?
दूजी सखी - यूं लागै जाणै डोरड़ी पै चालती हो, सुख-दुख रै बीच में थर-थर कांपती हो। मुंह कानी देखतां ही कयां ही डर लागै।(दोनूं सखियां आवे)
पहली सखी - आज सुसमा री सगाई है, सोचूं तो कियां ही लागै।
दूजी सखी - सगाई सूं सगळी छोरियां रो मन खराब हो ज्यावै।
पहली सखी - क्यूं?
पहली सखी - बात तो साची है। आज यूं लागै जाणै नाटक रै पहलै अंक रो पड़तो उठग्यो है। नायक-नायिका भी बिसा ही है, खुद नाटककार आपकै हाथां सूं सजा`र मंच पर भेज्या है। राजा सोमसंकर देखणै में इसो लागै जाणै टॉड रै लिख्ये 'राजस्थान` सूं निकळ`र दो-तीन सौ बरस पार करकै आयो होवै।
दूजी सखी - देख्यो नहीं, जिण दिन राजा साहब पैल पोत पधार्या हा, ठेठ बिचलै जुग री सकल-सूरत ही, गैल नै लटकता लांबा-लांबा घुंघराळा बाळ, कानां में बीरबली, हाथां में मोटी-मोटी चूड़, माथै पे चंदण रो तिलक अर अटपटी बोली, गंवारू उच्चारण। आ पड़्यो बिचारी बंसरी रै हाथां में अर होग्यो उण रो नयो संस्करण। देखतां-देखतां जियां कायापलट होयो उण सूं यो संदेह भी नही र्यो के बंसरी रै वंस मंे उण रो गोत्र भ्ज्ञी मिल ज्यावैलो। उण रै बाप प्रभुसंकर नैं बेरो पड़तां ही वो झट इण रै पंजै सूं छुड़ा ले गयो।
पहली सखी - पण बो पुरंदर संन्यासी बंसरी सूं भी बड़ो उस्ताद है। सगळी भीतां कूद कर वो राजा रै छोरै नै ब्रह्म समाज री इण बींटी-बदळ-सभ मंे फेर खींच ल्यायो। सगळां सूं मुसकिल ही खुद बंसरी री भींत जिकी नैं भी बो लांघ गयो।
(सुसमा री विधवा मां विभासिनी आवै)
(बैसाख रै दिनां में नदी रो पाणी सूख`र बीच में कठै-कठै बेळका निकळ आवै बिसो ही उणरो चेहरो है। ढीली-ढाली फैल्योड़ी देह है। कठै-कठै भरवां डील है, फेर भी जोबन र धार रो बच्यो-खुच्यो अंस दब्यो नहीं है।)
विभासिनी - कांई बातां करो हो थे बैठी-बैठी दोनूं?
पहली सखी - मांवसी, सगळां रो आणै रो बखत होग्यो पण सुसमा कठै है?
विभासिनी - कांई बेरो, सायद सजधज रही होसी। थे तो चालो बेटी चाय री टेबलां कनैं, पावणां नैं खुवाओ-प्यावो।
पहली सखी - जावूं मावसी, पण बठै अभी तावड़ो है।
विभासिनी - मैं भी जावूं देखूं, देखां सुसमा कांई करै है। थे तो अठै कोनी देखी उण नैं?
दूजी सखी - नहीं, मांवसी।
विभासिनी - कोई तो कैवे हो कै बा तळाब रै किनारै आई ही।
पहली सखी - नहीं तो म्हे तो दोनूं अठै ही घूमै ही।
(विभासिनी चली जावै)
दूजी सखी - अे, परणै तो देख, बिचारो सुधांसु कयां पच र्यो है। आपरी गांठ सूं फूल मोल ल्यायो है अर हाथां सूं टेबल सजा र्यो है। काल एक कांड होग्यो जिको सुण्यो? नेपू मुंह बणा`र कयो, 'सुसमा रिपियां रै लोभ में एक जंगळी राजा सूं ब्याह कर री है।`
पहली सखी - नेपूं! उण लाई रो मुंह तो बण ही सी उण री छाती में तो सेल गड़ग्या है। सुसमा खातर जवानां री छातियां में लंकादहन हो र्यो है। अर खासकर सुधांसु री छाती तो जंगी जहाज रो बॉयलर हो री है।
दूजी सखी - क्यूं भी कैवो, सुधांसु मैं तेज है। ज्यूं ही बो नेपू री बात सुणी तो झट उण नैं धरती पर दे मार्यो अर छाती पर बैठ कर बोल्यो- 'चिट्ठी लिख`र माफी मांगणी हो सी।`
पहली सखी - अब्बल दरजै रो गंवार है। उण संू डरतो कोई पेट भर`र किणरी निन्दा भी नहीं कर पावै। भला सोचो तो सही भारत री संतान रै आ किसी`क मुसीबत है!
दूजी सखी - थानैं ठा है? म्हारै बास में हतासां री एक सभा बणगी है। लोग उण रो नांव राख्यो है, 'सुसमा भक्त संप्रदाय`। उणांरी उपाधि है, 'सोसमिक` अर खुद वै लोग आपरो नांव राख्या है, 'अभागो गुट`। झंडो भी बणायो है जिकै में टूटेड़ै छाजलै रो निसान है। सांझ होतां ही इसो रोळो माचै कि पूछो मत। गिरस्थी लोग कैवै कै असेम्बली में प्रस्ताव पास करा`र छोड़स्यां। कानून बणा`र सगळां नैं पकड़-पकड़ जीवित समाधि दिरास्यां - मतलब ब्याह करा देसां। नहीं तो सारी रात अै किणी नैं सोवण भी नहीं दे सी। यो तो पब्लिक न्यूंसेंस है।
पहली सखी - इण लोक-हित रै काम में तूं मदद कर सकसी, प्रिया?
दूजी सखी - दयारी देवी, लोकहित री भावना तो तेरै में भी किणी सूं कम नहीं। तू निरभागां रै घर मंे भाग्यवती बणन रो सोख राखै। मैं भी अन्दाजै सूं समझ लेवूं! अबु उण आदमी नैं पिछाणै?
पहली सखी - देख्यो तो कदे ही कोनी।
दूजी सखी - छितीसबाबू है। कहाणियां लिखै, बोहळो नांव है। बंसरी कीमती चीजां रा बजार भाव जाणै है। हांसी मजाक करां जद कैवै, मट्टै री मनस्या दूध सूं पूरी करूं, मोती रै बदळै सीप ही सही।
पहली सखी - चाल बाई, सगळा आग्या। दोणुवां नैं एक सागै देखसी तो हांसी घालसी।
पहली सखी - पण बो पुरंदर संन्यासी बंसरी सूं भी बड़ो उस्ताद है। सगळी भीतां कूद कर वो राजा रै छोरै नै ब्रह्म समाज री इण बींटी-बदळ-सभ मंे फेर खींच ल्यायो। सगळां सूं मुसकिल ही खुद बंसरी री भींत जिकी नैं भी बो लांघ गयो।
(सुसमा री विधवा मां विभासिनी आवै)
(बैसाख रै दिनां में नदी रो पाणी सूख`र बीच में कठै-कठै बेळका निकळ आवै बिसो ही उणरो चेहरो है। ढीली-ढाली फैल्योड़ी देह है। कठै-कठै भरवां डील है, फेर भी जोबन र धार रो बच्यो-खुच्यो अंस दब्यो नहीं है।)
विभासिनी - कांई बातां करो हो थे बैठी-बैठी दोनूं?
पहली सखी - मांवसी, सगळां रो आणै रो बखत होग्यो पण सुसमा कठै है?
विभासिनी - कांई बेरो, सायद सजधज रही होसी। थे तो चालो बेटी चाय री टेबलां कनैं, पावणां नैं खुवाओ-प्यावो।
पहली सखी - जावूं मावसी, पण बठै अभी तावड़ो है।
विभासिनी - मैं भी जावूं देखूं, देखां सुसमा कांई करै है। थे तो अठै कोनी देखी उण नैं?
दूजी सखी - नहीं, मांवसी।
विभासिनी - कोई तो कैवे हो कै बा तळाब रै किनारै आई ही।
पहली सखी - नहीं तो म्हे तो दोनूं अठै ही घूमै ही।
(विभासिनी चली जावै)
दूजी सखी - अे, परणै तो देख, बिचारो सुधांसु कयां पच र्यो है। आपरी गांठ सूं फूल मोल ल्यायो है अर हाथां सूं टेबल सजा र्यो है। काल एक कांड होग्यो जिको सुण्यो? नेपू मुंह बणा`र कयो, 'सुसमा रिपियां रै लोभ में एक जंगळी राजा सूं ब्याह कर री है।`
पहली सखी - नेपूं! उण लाई रो मुंह तो बण ही सी उण री छाती में तो सेल गड़ग्या है। सुसमा खातर जवानां री छातियां में लंकादहन हो र्यो है। अर खासकर सुधांसु री छाती तो जंगी जहाज रो बॉयलर हो री है।
दूजी सखी - क्यूं भी कैवो, सुधांसु मैं तेज है। ज्यूं ही बो नेपू री बात सुणी तो झट उण नैं धरती पर दे मार्यो अर छाती पर बैठ कर बोल्यो- 'चिट्ठी लिख`र माफी मांगणी हो सी।`
पहली सखी - अब्बल दरजै रो गंवार है। उण संू डरतो कोई पेट भर`र किणरी निन्दा भी नहीं कर पावै। भला सोचो तो सही भारत री संतान रै आ किसी`क मुसीबत है!
दूजी सखी - थानैं ठा है? म्हारै बास में हतासां री एक सभा बणगी है। लोग उण रो नांव राख्यो है, 'सुसमा भक्त संप्रदाय`। उणांरी उपाधि है, 'सोसमिक` अर खुद वै लोग आपरो नांव राख्या है, 'अभागो गुट`। झंडो भी बणायो है जिकै में टूटेड़ै छाजलै रो निसान है। सांझ होतां ही इसो रोळो माचै कि पूछो मत। गिरस्थी लोग कैवै कै असेम्बली में प्रस्ताव पास करा`र छोड़स्यां। कानून बणा`र सगळां नैं पकड़-पकड़ जीवित समाधि दिरास्यां - मतलब ब्याह करा देसां। नहीं तो सारी रात अै किणी नैं सोवण भी नहीं दे सी। यो तो पब्लिक न्यूंसेंस है।
पहली सखी - इण लोक-हित रै काम में तूं मदद कर सकसी, प्रिया?
दूजी सखी - दयारी देवी, लोकहित री भावना तो तेरै में भी किणी सूं कम नहीं। तू निरभागां रै घर मंे भाग्यवती बणन रो सोख राखै। मैं भी अन्दाजै सूं समझ लेवूं! अबु उण आदमी नैं पिछाणै?
पहली सखी - देख्यो तो कदे ही कोनी।
दूजी सखी - छितीसबाबू है। कहाणियां लिखै, बोहळो नांव है। बंसरी कीमती चीजां रा बजार भाव जाणै है। हांसी मजाक करां जद कैवै, मट्टै री मनस्या दूध सूं पूरी करूं, मोती रै बदळै सीप ही सही।
पहली सखी - चाल बाई, सगळा आग्या। दोणुवां नैं एक सागै देखसी तो हांसी घालसी।
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